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________________ भगवती सूत्रे चतुष्यदेशविस्तीर्ण, अनुत्तरा वृद्धिवर्जिता लोकं प्रतीत्य असंख्येयप्रदेशिका, अलोकं प्रतीष्य अनन्तप्रदेशिका, लोकान्तं प्रतीत्य सादिका सपर्यवसिता, अलोकं प्रतीत्य सादिका अपर्यवसिता, रुचकाकारा च प्रज्ञप्ता इति भावः ॥ ०६ ॥ परिवर्तनद्वार वक्तव्यता ! मूलम् - "किमयं भंते! लोए त्तिं पवच्चइ ? गोयमा ! पंचस्थिकाया, raj rare लोए ति पच्चई, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अहम्मत्थिकाए, जाव पोग्गलत्थिकाए। धम्मस्थिकाएणंभंते! जीवाणं किं पवत्तइ ? गोयमा ! धम्मत्थिकारणं जीवाणं, आगमणगमण. भासुम्मे समणजोगा, वह जोगा, कायजोगा, जे यावन्ने तहप्रगारा चला भावा सब्वे ते धम्मत्थिकाए पवत्तंति, गतिलक्खणैर्ण धम्मत्थिकाए । अहम्मत्थिकाएणं, जीवाणं किं वत्तइ ? गोयमा ! अहम्मत्थिकारणं जीवाणं ठाण निसीयणतुयट्टणमणहस य एगत्तीभावकरणता जे यावन्ने तहष्पगारा थिरा भावा सब्वे ते अहम्मत्थिकाए पवत्तति, ठाणलक्खणेणं दिशा - अधोदिशा के सम्बन्ध में भी करना चाहिये । अर्थात् अधोदिशा भी रुचक आदिवाली है, रुचकरूप निर्गमस्थानबाली है यह चार प्रदेशरूप आदिवाली है, इसके चार प्रदेश विस्तीर्ण हैं, यह वृद्धिवर्जित है, लोक की अपेक्षा से यह असंख्यात प्रदेशोंवाली है, अलोककी अपेक्षा से यह अनन्तप्रदेशोंवाली हैं, लोककी अपेक्षा यह सादि सान्त है और अलोक की अपेक्षा यह सादि अनन्त है, तथा आकार में रुचक के जैसा आकारवाली है ॥ ६ ॥ इति दिविदिप्रवहद्वार वक्तव्यता ॥ રૂપ અાદિવાળી છે, તે રુચક રૂપ નિગમસ્થાનવાળી છે, તે ચાર પ્રદેશરૂપ माहिवाणी छे; तेना यार अहेशी विस्तीर्ण छे, ते वृद्धि रहित छे, बोउनी અપેક્ષાએ અસખ્યાત પ્રદેશેાવાળી અને અલાકની અપેક્ષાએ અનત પ્રદેશેવાળી છે. લેાકાન્તની અપેક્ષાએ તે સાદિક અને સાન્ત છે, પણ અલાકની અપેક્ષાએ તે સાદિ અનન્ત છે, તથા તેના આકાર રુચક જેવે છે. સૂ॰ા ગિનિંદિક્ પ્રવર્ણદ્વાર સપૂણ ६०४ · 10 f
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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