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________________ भगवती सूत्रे ६०० ओधिरिव लम्वायमानकटाग्रभागवत् संस्थितं - संस्थानम् - आकारो यस्याः सा तथाविधा, प्रज्ञता - भणिता, गौतमः पृच्छति - 'अग्गेयी णं भंते! दिसा किमाइया, किं पवडा, कइपदेसाइया, कइपदेस वित्थिन्ना, कइपएसिया, कि पज्जवसिया, कि संठिया पण्णचा ? ' हे भदन्त ! आग्नेयी खलु दिक् - विदिगित्यर्थः किमादिका कः आदिर्यस्याः सा किमादिका, कि वह कः प्रवst निर्गममूलस्थानं यस्याः सा किं महा, कति देशादिका, कतिप्रदेश विस्तीर्णा - कतिप्रदेश विस्तृता, कविमदेशिका, कि पर्यवसिता - किमवसाना, किं संस्थिता - किमाकारा, प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - ' गोयमा ! अग्गेषीणं दिसा रुयगाइया, रुपगप्पचहा, एगपएसाइया, एगपएसवित्थिन्ना अणुत्तरा लोगं पडुच्च असंखेज्नपएसिया, अलोगं पडुच्च अनंतपरसिया, लोगं पडुच्च साइया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च साइया अपज्जव- गाडी के आगे का जो लम्बाकाठ होता है-सो इस काठ के अग्रभाग के जैसा इसका आकार है । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं'अग्गेयो of अंते । दिसा किमाहया, किं पचहा, कइपएसा, कहपएसचित्थिन्ना, कपपलिया, किं पज्जबसिया, किं संठिया, पण्णत्ता' हे भदन्त । आग्नेयी विदिशा, किस आदिवाली है, इसके निर्गम का मूलस्थान कौन है ? कितने प्रदेशों में यह विस्तीर्ण है ? कितने प्रदेशोंवाली यह है ? यह किस अन्तबाली है ? और कैसा इसका आकार है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम! 'अग्गेयी णं दिसा रुयगाइया, रुगप्प वहा, एमएसाइया, एगपएसवित्थिन्ना, अणुत्तरा लोग पडुच्च, असं खेज्जप एसिया, अलोगं पडुच्च अनंतपएसिया, लोगं पडुच्च साइया, सपज्जबसिया अलोगं पडुच्च साइया अपज्जवसिया, छिण्णमुत्तावली લાખા લાંખા ભાગ હોય છે તેને “ શકટૌધિ ” કહે છે. પૂદ્દિશાના આકાર આ શકટૌષિ જેવા છે. गौतम स्वामीना प्रश्न - " अग्गेयीणं भंते । दिसा किमाइगा, किं पवहा, कइपएसाइया, कइपएसवित्थिन्ना, कइ पएसिया, किं पज्जवसिया, किं संठिया पण्णत्ता ?” हे भगवन् ! आशेयी विडिशा (अभिशु) या माहिवाजी छे ? તેનું નિગમસ્થાન—મૂળ—કયાં છે ? તે કેટલા પ્રદેશામાં વસ્તી છે? તે કેટલા પ્રદેશાવાળી છે? તે કયા અન્તવાળી છે ? તેના આકાર કેવા છે ? भडावीर अलुन! उत्तर- " गोयमा ! हे गौतम! "अग्गेयीणं दिसा रुयगाइया, रुयमपवहा, एगपएखाइया, एगपएसवित्थिन्ना, अणुत्तरा, लोगं पडुच्च असंखेज्जपएखिया, अलोगं पडुच्च अनंतपएसिया, लोगं पडुच्च साइया, सप ज्जवसिया अलोगं पडुच्च साइया अपज्जवसिया छिण्णमुत्तावली संठिया ” અગ્નિવિદિશા રુચક આદિ વાળી છે, એટલે કે રુચકથી શરૂ पण्णत्ता
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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