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________________ ५२८ भगवती 'नपुंसगवेयगा न उज्जति, सेस वे वे' नपुंसकवेदकास्तत्र नोपपद्यन्ते, शेष तदेव-पूर्वोक्तवदेव वोध्यम् । 'उबव्हतगावि तहेव, असनी उबति' उद्वर्तका अपि तथैव-पूर्वोक्तरत्नप्रभावदेव बोध्याः , नवरं-पूर्वापेक्षया विशेपस्तु-असंज्ञिनः उद्वर्तन्ते असुरकुमारादारभ्य ईशानपर्यन्नदेवानामसंशिष्वपि पृथिव्यादिपुत्पादाद, 'ओहिनाणी, ओहिदसणी य ण उन्नति, सेसं तं चेव' अवधिज्ञानिनः, अवधिदर्शनिनश्च न उद्वन्ते, अमुरादिभ्य उदृत्तानां तीर्थङ्करादित्वापाप्तः, तीर्थङ्करादी. नामेव चावधिमतामुवृत्तात्वोपलब्धः। शेषं तदेव-पूर्ववदेव बोध्यम् , 'पण्णत्तएसु वेद और पुरुषवेद में-उत्पन्न होते हैं। क्योंकि इनमें उत्पन्न होनेवालों में ये ही दो वेद होते हैं । 'नलगवेगा न उववज्जति सेसं तं चेव' नपुं. सकवेदनाले यहां उत्पन्न नहीं होते हैं-और सब कथन वाकी का पहिले जैसा ही है। 'उन्ननगा वि तहेव, असन्नी उव्यति' उहतकों के सम्बन्ध का कथन रत्नप्रभा में किये गये इनके कथन की तरह से ही जानना चाहिये, परन्तु जो इनके कथन में यहां विशेषता है वह ऐसी है कि यहां असंज्ञो उद्वर्तना करते हैं। क्योंकि असुरकुमार से लेकर ईशानपर्यन्त के देव असंज्ञीपृथिव्यादिकों में भी उत्पन्न हो जाते हैं। 'ओहिनाणी, ओहिदसणी य ण उव्वदृति-सेस तं चेव' अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी यहां से उतना नहीं करते हैं, क्योंकि असुरादिकों से उवृत्त हुए जीवों की उत्पत्ति तीर्थकरादि रूप से नहीं होती है और अवधिज्ञान एवं अवधिदर्शनसहित तीर्थंकरादिक ही उद्वर्तना करते हैं। बाकी का और सब कथन यहां उछतना संबंधी पहिले के ज्जति" असुरभारावासभा नघुमवहाय मसुरभारी अस्पन्न यता नयी. "सेसंतंचेव" माडीनुसभरत ४थन २नमा पृथ्वीना नाना सभा - " उव्वटुंतगा वि तहेव, असन्नी उव्वटुंति" ना विषय ४थन पाय રતનપ્રભા નારકેના કથન જેવું જ અહીં સમજવું પરંતુ અસુરકુમારની ઉદ્ધના કથનમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે અસુરકુમારથી અસંજ્ઞીઓ પણ ઉદ્વર્તન કરે છે, કારણ કે અસુરકુમારથી લઈને ઈશાનપર્યન્તના દે અસંગી पृथ्वीय माहिमा ५ सत्पन्न जय . "ओहिनाणी, ओहिदसणी य ण उच्चति-सेसं तंचेव" अधिज्ञानी मन मषिशनी व महीथी (અસુરકુમારાવાસમાંથી) ઉદ્વર્તન કરતા નથી, કારણ કે અસુરકુમારાદિમાંથી ઉત્ત થયેલા (નીકળેલા) જીવોની તીર્થંકરાદિ રૂપે ઉત્પત્તિ થતી નથી અને અવવિજ્ઞાન અને અવધિદર્શનથી યુક્ત તીર્થકરેની જ ઉદ્ધના થાય છે. બાકીનું સમસ્ત કથન ઉદ્વર્તના સંબધી નારકાના પૂર્વોક્તા કથન પ્રમાણે જ.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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