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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० १२ उ०४५० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् भवति, 'धा तिन्नि दुपएसिया खंधा भवंति, अथवा त्रयो द्विपदेशिका स्कन्धीः भान्ति 'चउहा कमाणे ए गयो तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयो तिप्पएसिए खंधे भवई' षट्रदेशिकः स्कन्धश्चतुर्धा क्रियमाणः एकतः-एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकन: अपरभागे त्रिदेशिका स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ दो परमाणुपोग्गला भति, एमयमो दो दुप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एकत:एकभागे द्वौ परमाणु उद्गलौ भवतः एकत:-अपरभागे द्वौ द्विपदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'पंचहा कज्जनाणे एगयो चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भव' षट्पदेशिकः स्कन्धः पञ्चधा क्रियमाणः एकत:-एकभागे चत्वारः यभाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध और तीसरे भाग में त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है । 'अहवा-निन्नि दुपएसिया खंधा भवंति ' अथवा-दो प्रदेशिक स्कंध तीन होते हैं । ' च उहा कजनमाणे एगयो तिनि परमाणुपोग्गलो, एगयओ तिप्पएलिए खंधे भवइ' षट् प्रदेशिक स्कंध के जम चार खण्ड किये जाते हैं-तब एक खंड में तीन पुद्गल परमाणु होते हैं और द्वितीय खण्ड में त्रिप्रदेशिक एक स्कंध होता है-अर्थात् एक एक पुशलपरमाणुरूप विभाग इसके होते हैं और चौथा विभाग त्रिप्रदेशिक एक स्कन्ध रूप होता है। 'अहवा एगयो दो परमाणुपोग्गला भवंति, एगपओ दो दुप्पएसिया खंश भवंति' एक तरफदो पुद्गलपरमाणुरूप दो विभाग होते हैं और एक तरफ दो द्विप्रदेशिक स्कन्धरूप विभाग होते हैं। 'पंचहा कज्जमाणे एगयो चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयो दुप्पएદેશિક કપ રૂપ બીજો ભાગ અને ત્રિપ્રદેશિક સ્કધ રૂપ ત્રીજો - ભાગ, આ પ્રકારના ત્રણ વિભાગમાં તે છ પ્રદેશિક સકંધ વિભક્ત થઈ જાય છે, "अहवा-तिन्नि दुप्पएसिया खधा भवंति" अथवा र दिशि थे। ३२ परत qिest 25 जय छ “च उहा काजमाणे एगयओ तिनि परमाणु पोग्गला, एंगयो तिप्पएसिए खंधे भव" छ प्रशि धना धारे यार વિભાગ કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુદ્ગલપરમાણુ રૂપ ત્રણ વિભાગે અને ત્રિપદેશિક ધ રૂપ એક વિભાગમાં તે વિભક્ત થઈ જાય છે. “ अहवा-एगयो दो परमाणु पोग्गला भवंति, एगयओ दुप्पएसिया खंया भवति" અથવા એક એક પુદ્ગલપરમાણુ રૂ૫ બે વિભાગ થાય છે અને દિપ્રદશિક ” બે છે રૂ૫ બીજા બે વિભાગ થાય છે. આ પ્રકારના ચાર વિભાગે પણ, मी श छ. “पंचहा कज्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ" ७ प्रशि४ २४धन न्यारे पाय विभागामा : भ० ५
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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