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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० १ सू०७ नारकलेश्यानिरूपणम् ५११ लेश्यास्थानेषु लेश्याभेदेषु संक्लिश्यासु संक्लिश्यत्सु पौनः पुन्थेन संक्लेशम् अवि'शुद्धि प्राप्नुवत्सु जीवः कृष्णलेश्यां परिणमति-प्राप्नोति, कृष्णलेश्यां परिणम्य'माप्य, कृष्णलेश्येषु नैरयिकेपु उपपद्यते, ' से तेगडेणं जाव उबदज्जइ' तत्-अथ, तेनार्थेन यावत्-एवमुच्यते यावत् कृष्णलेश्येपु नैरपिकेषु उपपद्यते, गौतमः पृच्छति-' से गुणं भंते ! कण्हलेस्से जान सुक्कछेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उत्रपज्जइ ? ' हे भदन्त ! तत् अथ, नूनं खलु किम् कृष्णलेश्यो यावत्-शुक्ललेश्यो भूत्वा नीललेश्येषु नैरयिकेषु उपपद्यते ? भगवानाह-हता, गोयमा :जाव 'उववज्जइ' हे गौतम ! हन्त-सत्यम् , यावत्-कृष्णलेश्यादिमान भूत्वा नीललेश्येषु नैरयिकेषु उपपद्यते, गौतमः पृच्छति-'से केणटेणं जाव उववज्जइ ?' किण्हलेस परिणमहत्ता कण्हलेस्लेसु नेरइएस्तु उववज्जई' लेश्या के 'भेद पुनः पुनः अविशुद्धि को प्राप्त होते रहते हैं उनकी अविशुद्धि में 'जीव कृष्णलेश्या को प्राप्त करता है, कृष्णलेश्या को प्रात करके फिर कृष्णलेश्यावाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है। 'से तेण?ण जाव जववज्जइ' इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है यावत् वह कृष्णलेश्यावाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । अप गौतमप्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से पूर्ण मते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जई' हे भदन्त ! क्या कृष्णलेश्यावाला, यावत् शुक्ललेश्यावाला होकर के जीव नीललेश्यावाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता गोयमा ! जाव उववज्जई' हां, गौतम ! कृष्णादिलेश्यावाला होकर के जीव नीललेश्यावाले नयिकों में उत्पन्न हो जाता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैंलेरसेसु नेरइएसु उववज्जइ" वेश्याना नहो । शन भविशुद्धि ॥ ४२॥ રહે છે. તેમની અવિશુદ્ધિ વખતે જીવ કૃષ્ણલેશ્યા પ્રાપ્ત કરે છે, કૃષ્ણલેશ્યા पास ४शत वेश्यावामा नारीमा उत्पन्न २४ तय छे. “से वेणद्वेणं जाव उववजह"गौतम! १२ भन्छ यी साधन शुस -પર્યાની વેશ્યાવાળે થઈને જીવ કૃષ્ણલેશ્યાવાળા નારકમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. गौतम स्वामीना प्रश-" से णूणं भते ! कण्हलेरखे जाव सुक्कलेस्खे भविचा नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जइ ? सन् ! वेश्याथी साधन શુકલેશ્યા પર્વતની લેશ્યાવાળા થઈને શું જીવ નીકલેશ્યાવાળા નારમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે ખરો? मडावीर प्रभुन। उत्तर-"हंता, गोयमा! जाव उववज्जह" ७, गौतम! કૃષ્ણાદિલેશ્યાવાળે થઈને જીવ નલલેસ્યાવાળા નારકમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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