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________________ ५०० भगवतीसूत्रे उपपद्यन्ते इत्यभिमायेणाह-नवरं-पूर्वापेक्षया विशेषस्तु अत्र असंख्येया मणितव्याः इति भावः ॥ सू०५ ॥ रत्नप्रभादि विशेषवक्तव्यता। ___मूलम्-"इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएसु किं सम्मट्टिी नेरड्या उववज्जंति, मिच्छादिट्ठी नेरइया उववज्जति, सम्मामिच्छादिट्री नेरइया उववज्जति ? गोयमा! सम्महिटी वि नेरइया उववज्जति, मिच्छादिट्ठी विनेरइया उववज्जंति नो सम्मामिच्छादिट्ठी नेरइया उववति। इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नर एसु किं सम्मदिट्टी नेरइया उव्वदृति ? एवं चेव। इमीसे ‘णं . भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं सम्मदिट्ठीहि, नेरइएहिं अविरहिया, मिच्छादिट्टीहि नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहि अविरहिया वा? गोयमा! सम्मदिद्विहिं वि नेरइएहि अविरहिया मिच्छादिट्रीहि वि नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, विरहिया वा। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि तिन्नि गमका भाणियब्वा। एवं सकरप्पभाए वि, एवं जाव तमाए वि। अहे सत्तमाए णं भंते! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु जाव संखेज्जवित्थडे नरए कि सम्मदिट्री को लेकर 'नवरं असंखेना भाणियव्वा' ऐसा कहा गया है। शेष वर्णन अप्रतिष्ठान के समान ही है। सू०५॥ पहले "मसभ्याता" प्रयास सर्वत्र थवा न. १ पात "नवरं असंखेज्जा भाणियव्वा " मा सूत्रा द्वारा व्यरत ४२वामा भावी छ..॥२०५।।
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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