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________________ भगवतीस्त्र णेन एवमुच्यते-पश्चादेशिका स्कन्धः स्यात् आत्मा कथञ्चित् सद्पा, स्यात् नो आत्मा-कथञ्चित् असद्पा , स्यात् अवक्तव्यम्-आत्मा च सद्रूपेण, नो नो-आत्मा च असदुरूपेण युगपद् वक्तप्रशामित्यादि ? भगवानाह-गोयमा ! अप्प. णो आइट्टे आया १,परस्स आइडे नो आया २, तदुभयस्स आइठे अवत्तव्यं ३ देसे आइटे सम्भावपज्जवे, देसे आइहे असम्भावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति। तियगसंजोगे एको ण पडइ' हे गौतम ! पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धः आत्मनः स्वस्य पञ्चपदेशिकस्कन्धस्य वर्णादि पर्याय आदिष्टे सति तैव्यपदिष्टः सन् आत्मास्वपर्यायापेक्षया सदरूपो भवति १, परस्य पट्प्रदेशिकादि स्कन्धान्तरस्यपर्यायैः अदिष्टे सति तैयपदिष्टः सन् नो आत्मा-अनात्मा-परपर्यायापेक्षया असदुरूपो भवतिर तदुभयस्य स्वपरोभयपर्यायैः आदिष्टे सति तदुभय. २२ भंग हुए हैं ? कि जिससे आप ऐसो कहते हैं कि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप है, कथंचित् असद्रूप है और कथंचित् वह अवक्तव्यरूप है-क्योंकि सदरूप से और असद्रूप से वह शब्दों द्वारा एक साथ नहीं कहा जा सकता है ? इत्यादि इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! अप्पणो आइडे आया१, परस्स आइडे नो आयार, तदु. भयस्स आइढे अवत्तव्यं३ देसे आइठे सम्भावपज्जवे, देसे आइहे असभावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति, तियसंजोगे एकोण पडई' हे गौतम!पंचप्रदेशिक स्कंन अपनी पंचादेशिक स्कंध की वर्णादिपर्यायों से आदिष्ट होने पर आस्मा अपनी पर्यायों की अपनी अपेक्षासे सद्रूप होता है१, और षट्प्रदेशिकादि पर-स्कन्धान्तर की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर वह नो आत्मा परपर्याय की अपेक्षा से असद्रूप होता है, સરૂપ છે અને અમુક અપેક્ષાએ અવક્તવ્ય છે, ઈત્યાદિ ૨૩ પૂર્વોકત ભગ આપ અહીં શા કારણે કહો છે? , महावीर प्रभुने। उत्तर-" गोयमा ! अपणो आइट्टे आया१, परस्म भाइटे नो आयार, तदुभयस्स आइडे अवत्तव्यं ३, देखे आइतु सम्भावपज्जवे, देखे आइटे असम्भावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडति, तियसंजोगे एकोण पडइ" હે ગૌતમ! પંચપ્રદેશિક સકંધ પિતાના (પંચપ્રદેશિક સ્કંધના) વર્ણાદિ પર્યાયેની અપેક્ષાએ આદિષ્ટ (કથિત) થાય ત્યારે તે પોતાના પર્યાયની અપેક્ષાએ સદુરૂપ હોય છે (૨) પંચદેશિક કપ જ્યારે પ્રદેશિક આદિ કન્યા-તરની અપેક્ષાએ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે પરપર્યાયની અપેક્ષાઓ ને मामा ३५-अस३५-डीय छे. (3) न्य.२ तमय (११५र्याय भने ५२.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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