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________________ ર भगवतीसू सिप आयाय १ नियनो आया य २' हे गौतम | पञ्चमदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा सद्रूाः १, स्यात् नो आत्मा - अनात्मा असद्रूपः २, 'सिय अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय ३' स्यात् अवक्तव्यम् - आत्मा सद्रूप इति च, नो आत्मा असद्रूप इति च युगपद् वक्तुमशक्यम् ३, 'सिय आया य नो आया य ४ सिय आया य अवत्तं ' ४ स्यात् आत्मा च सद्रूपेण नो आत्मा च असद्रूपेण ४, स्यात् कथश्चित् आत्मा च अवक्तव्यम् युगपदुभयरूपेण व्यपदेष्टुमशक्यम् ४ (११) 'नो आया य अवत्तव्वेण य ४' नो आत्मा च अवक्तव्येन सह चलारो भङ्गाः ४ ( ११ - १५ ) ' तियगसंजोगे एक्कोण पड' त्रिककसंयोगे संभवत्सु अष्टसु 'गोयमा' हे गौतम | 'पंचपद सिए खंधे सिय आया य १, सिय नो आया य २' पंच प्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप है, कथंचित् असदूरूप है २, 'सिय अवत्तव्वं आयाइ य नो आयाइ य' कथंचित् वह अवक्तव्यरूप है क्योंकि सद्रूप और असद्रूप इन दोनों शब्दों द्वारा युगपत् वह कहा नहीं जा सकता है३, 'सिय आया य, नो आया य सिय अवत्तव्वं४' कथंचित् वह सद्रूप से आत्मा है, असद्रूप से कथंचित् वह अनात्मा है और कथंचित् वह अवक्तव्य है क्योंकि सद्रूप और असारूप इन शब्दों द्वारा वह युगपत् अवक्तव्य होने से अवक्तव्य है (७) 'नो आया य अवत्तवेग य४' वह नो आत्मा है और अवक्तव्ध है इसको लेकर ४भंग और होते हैं४, इस प्रकार ७ और ये ४ मिलकर ११ भंग हो जाते हैं । 'तिय संजोगे एक्कोण पडद्द' तीन के संयोग में संभ भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! हे गौतम! " पंचपपलिए खंधे सिय, आया य१, सिय नो आया यर, " पांच अहेशिङ २४६ (१) अभु अपेक्षाओ सद्द३ययए होय छे, (२) अभुङ अपेक्षा से मसदृश्य पशु होय छे, “सिय अवतव्वं आयाइ य नो आयाइ य " ( 3 ) अभुङ अपेक्षा मे ते व्यवहूतव्य ३५ પશુ છે, કારણ કે સરૂપ અને અસદૃરૂપ શબ્દો દ્વારા તે એક સાથે અવાસ્થ્ય होय . "सिय आया य, नो आया य सिय अवत्तन्न ४" ते 'यप्रदेशि४ २४४ અમુક અપેક્ષાએ સરૂપ છે, અને અમુક અપેક્ષાએ અસરૂપ છે અને અમુક અપેક્ષાએ અવકતવ્ય છે, કારણ કે સરૂપ અને અસપ, આ એ શબ્દો વડે તે એક સાથે અવાચ્ય છે. એજ પ્રમાણે દ્વિકસ ચેાગી બીજા ત્રણ ભગ पूर्वेति यद्धति अनुसार सभभवा. "नो आया य अवत्तव्वेण य४ નાઆત્મા રૂપ (અસદ્ગુરૂપ) અને અવકતવ્ય છે, આ પદ્ધતિ અનુસાર ખીજા ચાર " ते પુકિત ભંગ થાય છે. પહેલાંના સાત ભગ અને આ ચાર ભગ મળીને કુલ ११ भौंग थाय छे. “ तियसंजोगे एक्को पा पडइ” श्रायुना सयोगथी मनता
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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