SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०१० सू०३ रत्नप्रभादिविशेपनिरूपणम् ४३१ नो आयाइय१, स्यात् नोआत्मा च असद्पा आक्तव्यम्-आत्मा सद्रूप इति च नोभात्मा असद्रूप इति च युगपदव्यपदेष्टुमशक्यम् १, 'सिय नो आया य अवचबाई आया य नो आयामो यर' स्यात् नो आत्मा च अवक्तव्यानि आत्मानश्च, नो आत्मानश्च२, 'सिय नो आयाओ य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३' स्यात् नो आत्मानश्च, अबक्तव्यम् आत्मा इति च नोआत्मा इति च३, 'सिय नो थायामी य अवत्तधाई आयाओ य नो आयायो य४' स्यात नोआत्मानश्च अवक्तव्यानिआत्मानश्च नोआत्मानश्चेति४ । (१२४३-१५) 'सिय आया य नो आया य अब११) 'सिय आया य, अवत्तव्वं आयाइय नो आयाहय' कचित् वह असदुरूप है, अवक्तव्य है, क्योंकि सद्प और असदुरूप इन शब्दों बारा वह युगपत् कहा नहीं जो सकता है १२ 'सिय नो आया य, अव: त्तव्वाई आयाओय नो आयाओयकचित आत्मा-असदरूप है एवं अनेक प्रदेशों की अपेक्षा अवक्तव्यरूप है, क्योंकि वह अनेक आत्मा और अनेक नो अनात्माओं द्वारा युगपत् कहा नहीं जा सकता है १३ 'सिय नो आयाओ य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय' कथंचित् वह अनेक नो आत्मा रूप है, एक अवक्तव्य है क्योंकि आत्मा नो आत्मारूप से वह युगपत् कहा नहीं जा सकता है १४; 'सिय नो आयाओ य, अवतव्वाइं आयाओ य नो आयाओ य' कथंचित् वह अनेक नो आत्मा रूप है, अपने अनेक प्रदेशों की अपेक्षा अवक्तव्य रूप है, क्योंकि वह अनेक आत्मा रूप से और अनेक नो आत्मारूप से एक साथ कहा जा नहीं सकता है १२, (११४४-१५) “सिय नो आया य, अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय १७ (१) या२४ તે ચતુષ્પદેશિક સ્કંધ અસદુરૂપ હોય છે અને સરૂપ અને અસદુરૂપ શબ્દ દ્વારા એક સાથે અવશ્ય હોવાને કારણે કર્થચિત્ અવકતવ્ય હોય છે. "सिय नो आया य, अवत्तव्बाई आया य नो आयाओयर" (२) श्यारे ते मसहु३५ હોય છે અને અનેક પ્રદેશોની અપેક્ષાએ અવક્તવ્ય હોય છે, કારણ કે તે અનેક આત્માઓ અને અનેક ને આત્માઓ દ્વારા એક સાથે અવાચ્ય હોય છે. "सिय नोभायाओ य, अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय३ "यारे भने । આત્મા રૂપ હોય છે અને આત્મા, આત્મા રૂપે એક સાથે વાચ્ય નહીં હોવાને यो मतव्य ३५ डाय छे. “सिय नो याोय, अवतव्वाई, आयाओय नो आयाओय४" (४) या२४ ते भने । मामा ३५ डाय छे भने भने। આત્મા રૂપે અને અનેક ને આત્મા રૂપે તે એક સાથે અવાચ્ય હોવાને ફારણે પિતાના અનેક પ્રદેશની અપેક્ષાએ અવકતવ્ય રૂપ હોય છે (૩+૧૨=૧૫)
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy