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________________ भगवती - एवं बुच्चइ-तिप्पएसिए खधे सिय आया एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय?' हे भदन्त ! वत्-अथ केना. थेन एवमुच्यते-त्रिप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा-सद्यः , एवमेव-पूर्वोक्तरी- त्यैव उच्चारयितव्यं वक्तव्यं यावत् स्यात् नो आत्मा, स्यात् अवक्तव्यम्-आत्मा इति च नो आत्मा इति च इत्यादि त्रयोदश उपर्युक्ता भङ्गा योध्याः। तदन्तिममाह-स्यात् आत्मा च नो आत्मा च अवक्तव्यः-आत्मा इति च नो आत्मा इति चेति१३। भगवानाह-'गोयमा ! अप्पणो आइडे आया१, परस्स आइटेनो आयार, तदुभयस्स आइहे अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय ३' हे गौतम! त्रिपदेशिका स्कन्धः आत्मनः स्वस्य त्रिप्रदेशिक स्कन्धस्य वर्णादिपर्यायैः आदिष्टे-आदेशे सति हैं-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चह, तिप्पएलिए खधे सिप आया एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तववं आयाइय नो आयाइय' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि त्रिमदेशिक स्कंध कथंचित् सद्रूप है इत्यादि सब "वह कथंचित् सदुरूप भी है कथंचित् असद्प भी है और अवक्तव्य रूप भी है" इस १३ तेरहवें भंग तक कहना चाहिये इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! अप्पणो __ आइढे आया' हे गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कंध जब अपनी वर्णादि पर्यायों से आदिष्ट होता है तब वह अपनी पर्यायों की अपेक्षा से सद्रूप है? और 'परस्स आहढे नो आया' दूसरे चतुष्प्रदेशिकादि स्कन्ध की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर वह नो आत्मा-असदुरूप है २। तथा 'तदुभयस्स :-आइठे अवत्तव्यं आया इय नो आयाइय' स्वपर्याय की अपेक्षा से बुच्चइ, तिप्पएसिए खधे सिय आया एवंचेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय" ३ मावन् ! शा २० એવું કહે છે કે ત્રિપ્રદેશિક ધ કથ ચિત્ સદુરૂપ છે, આ પહેલા ભાંગાથી શરૂ કરીને “તે કર્થચિત્ સદુરૂપ પણ છે, કર્થચિત્ અસદુરૂપ છે અને અવકતવ્ય રૂપ પણ છે.” આ તેરમાં ભાંગા પર્યન્તતા કથનને પ્રશ્નમાં આવરી લેવું જોઈએ महावीर प्रभुने। उत्तर-“गोयमा! अप्पणो आइछे आया । गौतम! જ્યારે પિતાના વર્ણાદિ પર્યાની અપેક્ષાએ ત્રિાદેશિક સહેધની વિવક્ષા કરાય छे, त्यारे याताना पर्यायानी अपेक्षा २६३५ गाय छ, मन "परस्स भाइ8 नो आया" यतुप्रशि४ मा धनी अपेक्षा अथित याय, al तनमात्मा ३५ (मस६३५) गाय छ, “तदुभयस्स आइडे अवत्तव्वं भायाइय नो आयाइय" तथा पर्याय भने ५२पर्यायनी अपेक्षा अथित याय,
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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