SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रेमयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू०.३ रत्नप्रवादिविशेषनिरूपणम् य११ स्यात् नो आत्मा असदपश्च अशक्तव्यौ-आत्मानौ च सदरूपो नो आत्मानौ च-असदुरूपौ इति च शब्देन युगपद् व्यपदेष्टुमशक्यौ ११, 'सिय नो आयाओं य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय१२' स्यात् नो आत्मानौ असौ च, अवक्तव्योआत्मा-सद्रूप इति च नो आत्मा असदुरूप इति च युगपद् व्यपदेष्टुमशक्यः१३, "सिय आया य नो आया य अवयं आयाइय नी आयाइय१३' स्यात् आत्मा सद्पश्च नो आत्मा-अनात्मा असरूपश्च, अवक्तव्यः-आत्मा इति चे 'नोआत्मा अनात्मा असदुपश्चेति च युगाद् व्यपदेष्टुमशक्यः१३। अंत्र त्रयोदशस्वपि भङ्गेषु त्रिपदेशिका स्कन्धः इत्यस्य सम्बन्धोऽबसेयः, एवं त्रिमदेशिके स्कन्ध त्रयोदशभङ्गाः १३। गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-से केणडेणं भवें। नो आया य अवत्तव्वाइ आयाओ य नो आयाओ य११ कथंचित् एक असद्रूप है और अनेक अवक्तव्य आत्मा रूप से एवं अनात्मा रूप से 'अवक्तव्य भी हैं ११, 'सिय नो आयाओय, अवत्तव्वं आयाइय नोआया इय' कथंचित् अनेक नो आत्मारूप और एक अवक्तव्य-आत्मा तथा नो आत्मारूप से युगपत् कहा जा नहीं सकने के कारण अवक्तव्यरूप है १२, 'सिय आया य नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नो अयाइय १३, कथंचित् यह सद्रूप भी है, कथंचित् असऐप भी है, एवं अवं. क्तन्ध-सदरूप तथा असद्रूप इन शब्दों द्वारा युगपत् कहा नहीं जा सकने के कारण अवक्तव्य भी है १३ यहां इन तेरह भंगों में त्रिप्रदेशि स्कंध का संबंध जानना चाहिये। त्रिप्रदेशिकस्कन्धं में इन १३ तेरह भंगो के होने में क्या कारण है ? इसी बात को गौतम प्रभु से यों पूछते आया य अवत्तव्वाई'आयाओ य नो आयाओ य११" (११) या धनी અપેક્ષાએ અસરૂપ પણ છે, અને પ્રદેશોની અપેક્ષાએ અનેક આત્મા રૂપે मन भने अनामा ३५ मतव्य पy छ. "सिय नोंआयाओ य, अवत्तवं आयाइय नो आयाइय१२" (१२) ४यारे प्रशानी अपेक्षा अन ना આત્મા રૂપ છે, તથા આત્મા અને આત્મા રૂપે એક સાથે અવાગ્યે पान १२0 अपतय ३५ ५४ . " सिय आया य नो आया य अवत्तव्यं 'आयाइय नो आयाइय१३".(13) यारे तस३५ पशहाय छ, सहરૂપ પણ હોય છે અને સદ્દરૂપ-અસદુરૂપ આ બે શબ્દો દ્વારા એક સાથે અવાચ્ય હોવાને કારણે અવકતવ્ય રૂપ પણ છે. ત્રિપદેશિક ધમાં આ પ્રકારના ૧૩ ભાગાઓ (વિકલપો) સંભવી શકે છે. હવે ત્રિપ્રદેશિંક રકંધમાં આ ૧૩ ભાંગાઓને સદ્ભાવ કયા કારણે હોય છે, તે જાણવા માટે ગૌતમ स्वामी महावीर प्रभुन या प्रमाणे प्रश्न पूछे छ-"से केण्डेणं भंते ! एवं
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy