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________________ भगवतीसूत्र आत्मा सद्यो पर्वते ? किं वा अन्यः नो आत्मा-अनात्मा असद्पो द्विपदेशिका स्कन्धो वर्वते? भगवानाह-गोयमा! दुप्पएसिए खंधे सिय आया?, सिय नो आया२, सिय अवत्तव्यं आयाइय, नो आयाइय३' हे गौतम ! द्विमदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा-सद्पः१, स्मात् नो आत्मा-अनात्मा-सदरूपः२, स्यात् अवक्तव्यःआत्मा इति च नोआत्मा-अनात्मा इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः३, 'सिय आया य, नो आया य४' द्विपदेशिकः स्यात् आत्मा च सदरूपः, नो आत्माअनात्मा च असद्रूपः 'सिय आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय५, द्विप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा च सद्रूपश्च, अवक्तव्यः-आत्मा इति च नो आत्माअनात्मा इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः, 'सिय नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय६,' द्विपदेशिकः स्कन्धः स्यात् नो आत्मा-अनात्मा च, अवक्तव्या-आत्मा इति च नो आत्मा-अनात्मा इति च शब्देन युगपदव्यपदेष्टुयावह असद्रूप है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! दुप्पएसिए खंधे सिय आया१, सिय नो आया २, सिय अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय ३' हे गौतम ! विप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप है १ कथंचित् असदुरूप है२, कथंचित् आत्मा और नो आत्मा इन शब्दों द्वारा वह युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण अवक्तव्य भी है३, 'सिय आया य नो आया य ४, कथंचित् वह सत् असत् उभयरूप भी है।' 'सिय आयाय अवत्तव्यं आयाश्य नो आयाइय ५' कतचित् वह सदुरूप भी है और आत्मा अनात्मा इन शब्दों से युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण अवक्तव्य भी है५, 'सिय नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नोआयाइय' कथंचित् वह असदुरूप भी है और आत्मा नो आत्मा इन शब्दों द्वारा युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण महावी२. प्रसुन उत्तर-"गोयमा! दुप्पएसिए खंधे सिय आया१, सिय नो आया२, सिय अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३, म्रिय आया य नो आया'; य४, सिय आया य अवतव्वं - आयाइय नो आयाइय५, - सिय नो आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय६" है गीतमा द्विपशि २४५ (१)- ४थ:थित सद्३५ छ, (२) ४थायित् अस६३५ छे, (3) मामा भन न मात्मा, આ બે શબ્દ વડે વાચ્ય ન હોવાને કારણે તે કથંચિત્ અવક્તવ્ય પણ છે, (४) ४थायित् सत् असत् (स३५-मस३५) भन्ने ३५ पर छे, (५) તે કથંચિત્ સદુરૂપ પણ છે અને આત્મા અનાત્મા શબ્દો વડે અવાગ્ય હોવાને કારણે અવક્તવ્ય પણ છે. (૬) તે કથંચિત્ અસરૂપ પણ છે અને આત્મા, ને આત્મા, આ બે શબ્દો દ્વારા એક સાથે વાંચ્યું ન હોવાને
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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