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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० १ आत्मस्वरूपनिरूपणम् ३७९ -जाम् , उपयोगात्मनाम् , ज्ञानात्मनाम् , दर्शनात्मनाम्, चारित्रात्मनाम्, वीयर्यात्मनां च मध्ये कतरे आत्मानः कतरेभ्य आत्मभ्यो यावत्-अल्पा वा, वहुंका वा; तुल्या वा, विशेषाधिका वा भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा! सबथोवाओ चरित्तायाओ, नाणायाओ अणंतगुणाओ, कसायाश्रो अणंतगुणाभो, जोगायामो विसेसाहियाओ, वीरियायाओ विसेसाहियाओ, उवयोगदवियदसणायाओ.विनि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ' हे गौतम ! सर्वस्तोकाः सर्वेभ्य आत्मभ्या अल्पावारित्रात्मानो भवन्ति, चारित्रात्मनां संख्यातत्वात् , तदपेक्षया ज्ञानात्मनः अनन्तगुणा भवन्ति, सिद्धादीनां सम्यग्दृशां चारित्रेभ्योऽनन्तगुणत्यात् , तदपेक्षया कपायात्मानः अनन्तगुणा भवन्ति, सिद्धेभ्यः कपायोदयवतामनन्तगुणत्वात् , योगात्माओं के, उपयोगात्माओं के, ज्ञानात्माओं के, दर्शनात्माओं के चारित्रात्माओं के और वीर्यात्माओं के बीच में कौन आत्माएँ किन आत्माओं से यावत्-अल्प हैं ? बहुत है ? अथवा तुल्य हैं ? अथवा विशे. षाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्वत्थोवाओ चरित्तायाओ नाणायाओ अणंतगुणाओ कसायाओ, अणंतगु. णाओ जोगायाओ विसेसाहियाओ, वीरियायाओ विसेसाहियाओ, उपयोगवियदसणायाओ तिनि वि तुल्लाओ विलेखाहियाओ' सब से कम चारित्रात्माएँ हैं क्योंकि चारित्रात्माएँ संख्यात हैं इनकी अपेक्षा ज्ञानात्माएँ अनन्तगुणित हैं, क्योंकि सिद्ध एवं सम्पादृष्टि आत्माएँ चारित्रवालों की अपेक्षा अनन्त गुणित हैं। इनकी अपेक्षा कषायात्माएँ अनन्तगुणित होती हैं। क्योकि कषायोदय वाले जीव सिद्धों की 'द्रव्यात्मामी, षायामामी, योगामाया, 6पयोगात्मामा, ज्ञानात्मामा, દિનાત્માઓ, ચારિત્રાત્માઓ અને વીર્યાત્માઓમાં કયા આત્માએ કયા , આત્માઓ કરતાં ઓછાં છે? કયા વધારે છે? કયા આત્માઓ તુલ્ય છે અને કયા આત્માએ કયા આત્માઓ કરતાં વિશેષાધિક છે? महावीर प्रभुना त्तर-" सबथोवाओ चरित्तायाओ, गाणायाओ अगंतगुणाओ, कसायायाओ अणंतगुणाओ, जोगायाओ विसेसाहियाओ, वीरियायामओ विसेसाहियाओ, उवयोगदवियदसणायाओ तिन्नि वि तुलाओ विसेसाहियाओ" ચારિત્રાત્માએ સૌથી ઓછાં છે, કારણ કે ચારિત્રાત્માએ સંખ્યાત છે. ચારિત્રાત્માઓ કરતાં જ્ઞાનાત્માઓ અનંત ગણું છે, કારણ કે સિદ્ધ અને સમ્યગૃષ્ટિ આત્માએ ચારિત્રવાળાઓ કરતાં અનંત ગણું છે જ્ઞાનાભાઓ કરતાં કષાયાત્માએ અનંત ગણું છે, કારણ કે કપાદિયવાળાં જ
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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