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________________ भगवतीसूत्रे दर्शनात्मत्वमवश्यं भवति यथा संसारिणाम्। अथान्तिमपदद्वयोः प्ररूपणमाहजस्स चरित्ताया तस्स वीरियाया नियमं अस्थि, जसरा पुण बीरियाया तस्स चरिताया सिय अस्थि सिय नस्थि' यस्य चारित्रात्मत्वं भवति, तस्य वीर्यात्मत्वं नियमादस्ति वीयमन्तरा चारित्रस्यासंभवात् , यस्य पुनर्वीर्यात्मत्वं भवति तस्य चारित्रात्मत्वं स्यादस्ति यथा साधूनाम् , स्यान्नास्ति यथा असंयतानाम् । अथैषा मेव आत्मनामल्पवहुत्ववक्तव्यतामाह-'एयासिणं भंते ! दवियायाणं कसायायाणं जात वीरियायाणय कयरे कयरेहितो जाय विसेसाहिया वा ?' गौतमः पृच्छतिहे मदन्त! एतेषां खलु पूर्वोक्तानां द्रव्यात्मना, पायात्मनां यावत्-योगात्मदर्शनोत्मता अवश्य होती है, जैसे संसारी जीवो में 'जस्त चरित्ताया तस्स वीरियाया नियम अत्थि, जस्स पुण वीरियायो तस्ल चरित्ताया सिय अस्थि सिय नत्थि तथा जिस आत्मा में चारित्रात्मता होती है, उस आत्मा में वीर्यात्मना अवश्य होती है क्योंकि वीर्य के बिना चारित्र की असंभवताहै। तथा जिस आत्मा में वीर्यात्मता होती है, उस में चारित्रस्मता होती भी है और नहीं भी होती है। वीर्यात्मता के साथ चारित्रात्मता अनगारों में तो होती है, परन्तु असंयतों में नहीं होती है। ____ अब सूत्रकार इनके अल्पबहुत्व की प्ररूपणा करने के निमित्त कथन करते हैं-'एयासि णं भंते ! दवियायाणं कसायायाणं जाव वीरियायाण य कयरे कयरे हितो जाव विसेसाहिया वा' इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! इन पूर्वोक्त द्रव्यात्माओं के, कषायात्माओं के यावत्જીવમાં વીર્યાત્મતા હોય છે, તે જીવમાં દર્શનાત્મતાને અવશ્ય સદુભાવે હોય छ रेस-ससारी वामां: - " जस्स चरित्ताया, तस्स वीरियाया नियमं अस्थि, जस्स पुण विरियाया तस्म, चरित्ताया सिय अस्थि, सिय नथि" २ मामामा शास्त्रिात्म डाय છે. તે આત્મામાં વિર્યાત્મતા અવશ્ય હોય છે, કારણ કે વીર્ય વિના ચારિત્રની અસંભાવના હોય છે પરંતુ જે આત્મામાં વીત્મતા હોય છે, તે આત્મામાં ચારિત્રાત્મતા હોય છે પણ ખરી અને નથી પણ હતી દાખલા તરીકે અણગારેમાં વીર્યાત્મતાની સાથે ચારિત્રાત્મતા હોય છે, પરંતુ અસં. યમાં વીર્યાત્મતા હોવા છતાં ચારિત્રાત્મતા દેતી નથી. . : - હવે સૂત્રકાઆ આઠ પ્રકારના આત્માના અલ્પબદ્ધત્વની પ્રરૂપણ કરે છે- गौतम स्वामीना प्रश्न-" एयासिणं भंते ! दवियायाणं कसायायाणं जाव वीरियायाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया ?" ३ सन् ! पूर्वरित
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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