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________________ भगवतीसूत्रे 3 ३६४. अस्थि' हे गौतम! यस्य जीवस्य द्रव्यात्मत्वं भवति, तस्य उपयोगात्मत्वं नियमा दस्ति यस्यापि उपयोगात्मत्वं भवति, तस्यापि द्रव्यात्मत्वं नियमादस्ति, एतयोः परस्परेणाविनाभावात् यथा सिद्धस्य तदन्यस्य च द्रव्यात्मत्वमस्ति उपयोगाence चास्ति जीवानामुपयोगलक्षणत्वात्, 'जस्स दवियाया तस्स जाणाया भयगाए' यस्य द्रव्यात्मत्वं भवति, तस्य ज्ञानात्मत्वं भजनयां भवति, यथा सम्य स्यादस्ति, मिथ्यादृष्ठीनां स्वान्नास्ति इत्येवं रूपेण भजना बोध्या, 'जस पुण णाणाया तस्स दवियाया नियमं अस्थि' किन्तु यस्प पुनर्ज्ञानात्मत्व भवति, तस्य द्रव्यात्मत्व ं नियमादस्ति यथा सिद्धस्य, 'जस्स दवियाया तस्स या तस्स वि दविद्याया नियमं अस्थि' जिस जीव में द्रव्यात्मता होती है, उसे जीव में उपयोगात्मता अवश्य होती है तथा जिस जीव में उपयोगात्मता होती है, उसमें द्रव्यात्मता भी नियम से होती है क्योंकि इन दोनों का परस्पर में अविनाभाव संबंध है। जैसा कि इन दोनों का अविनाभाव संबंध सिद्धों में है। इसी प्रकार का अविनाभाव संबंध' इन दोनों का परस्पर में सिद्धों से अतिरिक्त जीवों में भी है क्यों कि जीव का स्वभाव उपयोग लक्षण वाला है 'जस्स दवियाया तस्स णाणाया, भयणाए ' जिस जीव में द्रव्यात्मता है उस जीव में ज्ञानात्मता भजना से होती है जैसे द्रव्यात्मता सम्यग्दृष्टियों में होती है और ज्ञानात्मता भी होती है परन्तु मिध्यादृष्टियों में ऐसा नहीं है वहां द्रव्यात्मता होने पर भी ज्ञानात्मता नहीं होती है 'जस्स पुण णाणाया, तस्स दवियाया नियमं अस्थि ' परन्तु सिद्ध की तरह जिसमें ज्ञानात्मता है उसमें द्रव्या દ્રબ્યાત્મતા હાય છે, તે જીવમાં ઉપયાગામતા પણ અવશ્ય હાય છે, તથા જે જીવમાં ઉપયાગામતા હોય છે, તે જીવમાં દ્રવ્યાત્મતા પણ નિયમથી જ ડાય છે, કારણ કે તે બન્નેના આપસમાં અવિનાભાવ સંબંધ છે આ બન્નેનેા જેવા અવિનાભાવ સબંધ સિદ્ધોમાં છે, એજ પ્રકારના આ મન્નેના અવિ નાભાવ સંબંધ સિદ્ધ સિવાયના જીવામાં પણ હોય છે, કારણ કે જીવને સ્વભાવ उपयोग सक्षकुंवाणी छे " जस्स दवियाया तस्स णाणाया भयणाए " ने लवभ દ્રવ્યાત્મતા હાય છે, તે જીવમાં જ્ઞાનાત્મતા હાય છે પણ ખરી અને નથી પણ હાતી જેમ કે સમ્યગ્દષ્ટિ જીવામાં દ્રન્યાત્મતા પણ હાય છે અને જ્ઞાનાત્મતા પણ હાય છે, પરન્તુ મિથ્યાÈષ્ટિએમાં દ્રશ્યાત્મતા ઢાવા છતાં पशु ज्ञानात्मता होती नथी. " जर पुण णाणाया, तस्स दवियाया नियमं अस्थि " परन्तु सिद्धनी प्रेम ? भवभ ज्ञानात्मता होय 'छे, ते लवमां +
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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