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________________ भगवतीसुत्रे ३३४ भव्यद्रव्य देवाः पूर्वोक्ते सर्वदेवेषु उपपद्यन्ते, यावत् - भवनपतिवानन्यन्तरज्योतिषिकवैमानिकन मैवेयक पश्चानुत्तरोपपातिकसीर्थसिद्धपर्यन्तेषु उपपद्यन्ते इति भावः । गौतमः पृच्छति - 'नरदेवा णं भंते! अगंतरं उन्नहित्ता पुच्छा' हे भदन्त ! नरदेवाः खलु अनन्तरम् - नरदेवभवान्तरम् उद्धृत्य कुत्र उपपद्यन्ते ? इति पृच्छा, भगवानाह - 'गोमा | नेरइएस उबवज्जंति, नो तिरिक्खजोणिएसु, णो मणुस्सेसु, णो देवे उज्जत' हे गौतम! नरदेवा उद्वर्तनानन्तरं नैरयिकेषु एवोत्पद्यन्ते, नो तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते, नो वा मनुष्येषु उपपद्यन्ते, नो वा देवेषु - भवनपत्यादिसर्वार्थसिद्धिपर्यन्तेषु उपपद्यन्ते, तथा च अपरित्यक्तकामभोगा नरदेवा नैरयि के पूत्पद्यन्ते, शेषत्रये तिर्पङ्गमनुष्य देवरूपे तु तत्मतिषेधोऽवसेयः, तत्र केषांचिच्चक्रवर्तिनां उत्पन्न होते हैं यावत् भवनपति वानव्यन्तर ज्योतिषिक, वैमानिक, नवग्रैवेयक, पांच अनुत्तरौपपातिक इन सब देवों में वे उत्पन्न होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' नरदेवाणं भंते ! अनंतरं उच्चट्ठिता पुच्छा' हे अदन्त | नरदेव नरदेवभय को छोड़ने के बाद ही कहाँ उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा' हे गौतम! 'नेरइएस उबवज्जंति, जो तिरिक्खजोगिएसु, णो मणुस्सेसु, णो देवेलु उचचज्जंति' नरदेव नरदेवभव को छोड़ने के बाद ही नैरयिकों में ही उत्पन्न होते हैं, तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं, न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, और न भवनपति से लेकर सर्वार्थसिद्धपर्यन्त के देवों में वे उत्पन्न होते हैं। क्यों कि काम भोगों को नहीं छोड़ने वाले नरदेव बहु आरम्भपरिग्रही होने के कारण मरकर नैरथिकों में ही उत्पन्न होते हैं । तिर्यश्चों में, मनुष्यों में, एवं देवों में वे उत्पन्न नहीं होते हैं। यद्यपि कितनेक છે. એટલે કે ભવનપતિથી લઈને પાંચ મનુત્તર વિમાનવાસી ન્તના ફાઈ પણ પ્રકારના દેવામાં ઉત્પન્ન થાય છે. गौतम स्वाभीने! प्रश्न-“ नरदेवाणं भंते ! अणंतर उचट्टित्ता पुच्छा " डे ભગવન્! નરદેવા નરદેવ ભવ છેાડયા પછી કર્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? महावीर प्रभुना उत्तर- " गोयमा ! नेरइएस उववज्जति नो तिरिक्जोगिएसु, णो मणुस्सेसु, णो देवेसु उत्रवज्र्ज्जति ” नरहेवा, नरहेव भवतु आयुष्य पूई કરીને નારકામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે, તિય ચામાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી, મનુષ્ચામાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી અને ભવનપતિથી લઈને સર્વાર્થસિદ્ધક પન્તના દેવેમાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી તેનુ કારણ એ છે કે નરહેવા કામણેાગેામાં રચ્યાપચ્યા રહે છે. તે અતિશય આરભ અને પરિગ્રહથી ચુકત હાય છે, તેથી તેઓ નારકામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. જો કે કેટલાક ,
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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