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________________ भगवतीसूत्रे यंग्योनिकेभ्य उद्वृत्तानां मनुष्ये मानुगत्याभावानचारित्रं वर्तते, अत एव-एतेभ्य उत्तानां न धर्मदेवत्वमितिभावः। गौतमः पृच्छति-'देवाधिदेवाणं भंते ! कओहितो उववज्जति? किं नेरइएहितो उववज्जति पुच्छा' हे भदन्त ! देवाधिदेवाः केभ्यः आगत्य उपपद्यन्ते ? किं नैरयिकेभ्य आगत्य उपपद्यन्ते ? किं वा भवनपति पृथिवीकायिकाकेन्द्रियादि तिर्यग्योनिकमनुष्यवानव्यन्तरज्योतिपिकवैमानिक नवग्रैवेयकपश्चानुत्तरौपपातिकसर्वार्थसिद्धिकेभ्यो वा आगत्योपपद्यन्ते ? इति पृच्छा, भगवानाह-गोयमा ! नेरइएहितो उववज्जति, नो तिरिक्खजोणिएहितो, सप्तमी से तैजस्कायिकों से, वायुकायिकों से, असंख्यातवर्ष की आयु: वाले अकर्मभूमिजों में से, एवं कर्मभूमिजों में से, एवं अन्तरद्वीपजों में से, तिर्यञ्चों में से, मनुष्यों में से-निकले हुए जीव मनुष्य नहीं होते हैं, मनुष्य नहीं होने के कारण चारित्र के अभाव में वे चारित्रयुक्त अनगार रूप धर्मदेव नहीं होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' देवाहिदेवाणं भंते ! कओहितो उववज्जंति, कि नेरइएहिंतो उववज्जंति, पुच्छा०' हे भदन्त ! देवाधिदेव कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? किंवा-भवनपति से पृथिवीकायिकादिक एकेन्द्रियादिनियंग्योनिकों में से, मनुष्यों में से, वानव्यन्तरों में से ज्योतिषिकों में से, वैमानिकों में से, यापंच अनुत्तरोपपातिक-विजय-वैजयन्त जयन्त, अपराजित, एवं सर्वार्थसिद्ध-इन पांच में से आकरके देवाधिदेव उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा' हे गौतम! 'नेरहષ્યવાળા અકર્મભૂમિજ, કર્મભૂમિજ, અને અન્તરદ્વીપજ મનુષ્યો અને તિર્યચામાંથી નીકળેલા જે મનુષ્ય રૂપે ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી અને મનુષ્ય રૂપે ઉત્પન નહીં થવાને કારણે ચારિત્રને અભાવ હોવાને કારણે તેઓ અણગાર રૂપ ધર્મદેવ પણ થતા નથી. गौतम स्वामीन। प्रश्न-“देवाहिदेवाणं भंते ! कओहिंतो उववज्जंति" है मगवन् ! हाधिव यांथी मावीन. 4-1 थाय छ १“किनेरइएहितो उववज्जति, पुच्छा०" शु' नामाथी मापीनपन्न थाय छ१९ सपनપતિ જેમાંથી આવીને ઉત્પન થાય છે? કે પૃથ્વીકાયિક કિંક એકેન્દ્રિયાદિ તિર્યમિકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે કે મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે કે વાન વ્યંતર દેવમાંથી, તિષિકેમાંથી, વૈમાનિકોમાંથી નવશ્રેયકમાંથી, કે વિજય આદિ પાંચ અનુત્તપિપાતિક દેવોમાંથી આવીને पन्न थाय छ?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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