SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०९ सू०२ देवोत्पत्तिनिरूपणम् तानरूपणम् ३११ नैरयिकेभ्यो वा आगत्य उपपद्यन्ते। गौतमः पृच्छति-'जइ देवेहितो उववज्जति, किं भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जति, वाणमंतरदेवेहितो, जोइसियदेवेहितो, वेमा णियदेवेहितो उववज्जति?' हे भदन्त ! यत् खलु नरदेवा देवेभ्यः आगत्योपपर पन्ते, तत् किं भवनवामिदेवेभ्य आगत्य उपपद्यन्ते? किं वा वानव्यन्तरदेवेभ्य आगत्य उपपद्यन्ते ? किं वा ज्योतिपिकदेवेभ्य आगत्योपपद्यन्ते ? किं वा वैमानि कदेवेभ्य आगत्य उपपद्यन्ते ? भगवानाह-'गोयमा ! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति, वाणवन्तरदेवेहितो० एवं सचदेवेसु उनवाएयव्या वतीभेदेणं भाव सनसिद्धति' हे गौतम ! नरदेवा भवनवासिदेवेभ्योऽपि आगत्योपपद्यन्ते, एवं निकलकर उत्पन्न होते हैं किन्तु शर्कराप्रभापृथिवी के नैरयिकों में से यावत् अधःसप्तमी पृथिवी के नैरयिकों में से निकलकर उत्पन्न नहीं होते हैं। अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जइ देवेड़ितो उववजंति; किं अवणवालिदेवेहितो उववज्जति, वाणमंतरदेवेहितो उवध. ज्जंति, जोइलियदेवीहितो उववज्जंति, वेमाणियदेवहितो उववज्जति' हे.भदन्त ! यदि नरदेव देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं तो क्या वे भवनवासिदेवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या वानव्यन्तर देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा ज्योतिष्क देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या वैमानिक देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जंति, वाणमंतर देवेहिती० एवं सव्वदेवेसु उववाएयव्वा, वक्रत्तीभेएणं जाव-सव्व? सिद्धत्ति' नरदेव भवनवासि देवों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं, वानव्यन्तर देवों में से भी आकर અધાસપ્તમી પૃથ્વી પર્યન્તની પૃથ્વીના નારકમાંથી નીકળીને જ नरव ३५- 6पन्न यता नथी. गौतम स्वामीना प्रश्न-" जइ देवेहितो उववज्जति, कि भवणवासिदेवे. हितो उववजंति, वाणमतरदेवेहितो उववज्जति ? जोइसियदेवेहितो उववज्जति, वेमाणियदेवेहितो उववति? सन् ! हवामाथी माजी नरव રૂપે ઉત્પન્ન થતા હોય, તે શું ભવનવાસી દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે વાનવ્યંતર દેવમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે જ્યોતિષિક દેવોમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે વૈમાનિક દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर प्रभुना उत्तर-" गोयमा!" गौतम ! " भवणवासिदेवहितो वि उववजंति, वाणमंतरदेवेहितो० एवं सव्वदेवेसु उववाएयव्वा, वकंतीभेएणं जाव सव्वट्ठसिद्धति" नरदेव, भवनवासी देवाभाथी भावीन. पाय अत्पन्न याय
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy