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________________ ३०२ _भंगवतीसूत्र च्यते-देवाधिदेवाः, देवाधिदेवाः इति ? देवाधिदेवशब्दस्य कोर्थः इति प्रश्ना, देवानां मध्ये पारमार्थिकदेवत्वयोगादधिकाः देवाः देवाधिदेवाः इत्यभिप्रायेणाह'गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंतो उप्पननाणदसणधरा जाब, सबदरिसी' हे गौतम ! ये इमे अर्हन्तः-जिनेश्वराः, भगवन्ता, उत्पन्नज्ञानदर्शनधराः केवलिनः, यावत्-वीतरागाः सर्वज्ञाः सर्ववर्शिनः सन्ति, ते एव देवाधिदेवा उच्यन्ते, इत्यभिप्रायेण उपसंहरन्नाह-'से तेणट्टेणं जाव देवादिदेवा, देवाहिदेवा' हे गौतम! तत्-अथ, तेनार्थेन-तेन कारणेन, यावत्-एवमुच्यते-देवाधिदेवाः देवाधिदेवाः इति । गौतमः पृच्छति-से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-भावदेवा, भावदेवा ?' हे भदन्त ! तत् अथ, केनार्थेन-केन कारणेन, एवमुच्यते-भावदेवाः भावदेवाः ऐसा कहते हैं-अर्थात् देवाधिदेव शब्द का अर्थ क्या है ? उसके उत्तर में प्रभु इस अभिप्राय से कि "जो देवों के बीच में पारमार्थिक देवत्व के योग से अधिकरूप में देव होते हैं वे देवाधिदेव हैं " गौतम से कहते हैं-'गोषमा! जे अरिहंता भगवंता, उत्पननाणदंसणधरा जाव सव्वदरिसी' हे गौतम ! जो ये अर्हन्त भगवन्न हैं कि जो उत्पन्न केवलज्ञान और केवलदर्शन के धारी हैं-केवली हैं यावत्-वीतराग हैं, सर्वज्ञ हैं, सर्वदर्शी हैं, वे ही देवाधिदेव कहलाते हैं-'से तेणटेणं जाव देवाहिदेवा' देवाहिदेवा, इसी कारण से मैं ने उन्हें देवाधिदेव कहा है। ____ अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सेकेणटेणं भंते! एवं चुच्च भावदेवा भावदेवा' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि ये भावदेव हैं, ये भावदेव हैं ? अर्थात् भावदेव इस शब्द का દેવાધિદેવ” કહ્યું છે એટલે કે આપ દેવાધિદેવ કેને કહે છે? મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર-જેમને પારમાર્થિક દેવત્વના રોગથી, દેવે પણ પિતાના દેવ રૂપે સ્વીકારે છે, તેમને દેવાધિદેવ કહે છે. એ જ વાત નીચેના सूत्रा सूत्रमारे ५४८ री छे. “जे इमे अरिहंता भगवंता, उत्पन्ननाणदसणधरा, जाव सव्वदरिखी" गौतम ! Sun विज्ञान मन श. નન ધારક, વીતરાગ, સર્વજ્ઞ અને સર્વદશી એવાં અહંત ભગવાનને “દેવાबिव' वामां आवे छे. “से केणठेणं जाव देवाहिदेवा, देवाहिदेवा" હે ગૌતમ! તે કારણે મેં તેમને-સર્વજ્ઞ અહંત ભગવાને-દેવાધિદેવ કહ્યા છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, भाव देवा, भावदेवा? " मन् ! माथे शा पारणे हेवान पायमा २२ “ मा " નામ આપ્યું છે એટલે કે “ભાદેવ' પદને શું અર્થ થાય છે અને આપ કેને ભાવદેવ કહે છે?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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