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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९ सू० १ देवप्रकारनिरूपणम् . २९७ का विहाणं भंते ! देवा पगत्ता ?' हे भदन्त ! कतिविधाः कियत्यकारीः खलु देवाः प्रज्ञप्ताः? भगवानाह-'गोयमा ! पंचविहा देवा पण्णत्ता' हे गौतम ! पश्वविधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, तत्र दीव्यन्ति -क्रीडादिकं कुर्वन्ति इति देवाः, दीव्यन्ते वा स्तूयन्ते आराध्यतयेति देवाः, तानेव पश्चविधान् देवानाह-'तं जहा-भविय दय देवार, नरदेना२, धम्मदेवा३, देवाहिदेवा४ भावदेवा५' तद्यथा-भव्यद्रव्यदेवाः१, नरदेवाः२, धर्मदेवा३, देवाधिदेवाः४, भावदेवा ५, अथार्थद्वारमाह देववक्तव्यता'कइविहाणं भंते । देवा पण्णत्ता' इत्यादि। टीकार्थ-पूर्व उद्देशक में देवकी नागादिलोकों में उत्पत्ति प्ररूपित की गई है इस कारण उसके सम्बन्धको लेकर इस नौवें उद्देशक में देवों की ही प्ररूपणा के लिये नामबार की प्ररूपणा की गई है इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'काविहा णं भंते देवा पण्णत्ता' हे भदन्त ! देव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! पंचविहा देवा पण्णत्ता , हे गौतम । देव पांच प्रकार के कहे गये हैं ! 'दीव्यन्ते-क्रीडादिकं कुर्वन्ति, इति देवाः, दीव्यन्ते वा स्तूयन्ते आराध्यतया इति देवाः' देव शब्द की इस व्युत्पत्ति के अनुसार विविध प्रकार की क्रीडा करनेवाले जो होते हैं, वे देव हैं या जो जनता द्वारा आराध्यरूप से स्तति के विषयभूत किये जाते हैं वे देव हैं-ऐसे ये देव पांच प्रकार के कहे गये हैं-'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'भविघदव्वदेवा,१ नरदेवा,२ धम्मदेवा,३ देवाहिदेवा,४ भावदेवा५' भव्यद्रव्यदेव१, नरदेवर, धर्मदेव३, देवाधिदेव४, भावदेव५, -वतव्यता“कइ विदाणं भते ! देवा पण्णत्ता, त्याટીકાર્થ–પૂરેશકમાં નાગકુમાર આદિ દેવલોકમાં ઉત્પત્તિની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી છે. આ પ્રકારના પૂર્વોદ્દેશક સાથેના સંબંધને લીધે સૂત્રકારે આ નવમાં ઉદ્દેશકમાં દેવેની જ પ્રરૂપણ કરી છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી महावीर प्रभुने सेवा प्रश्न पूछे छे 3-" कहविहाणं भंते । देवा पण्णता?" હે ભગવન ! દેવોના કેટલા પ્રકાર કહ્યા છે? महावीर प्रभुना उत्त२-" गोयमापंचविहा देवा पण्णता "गौतम! देवाना पांय ४२ हा छ. " तंजहा" । नीय प्रभारी छ"भवियद्व्वदेवा, नरदेवा, धम्मदेवा, देवाहिदेवा, भावदेवा" (१) भव्यद्रव्य भ० ३८
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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