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________________ ૨૮ __ भगवतीसूत्रे महयशाः, महासौख्यो द्विशरीरेषु मणिषु- पृथिवीकायरूपेषु ,उपपधेत ? भगचानाह-एवंचेव , जहा नागाणं' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव , यथा नागानां प्रतिपादितं तथैव द्विशरीरेषु मणिष्वपि पतिपत्तव्यम् । गौतमः पृच्छति'देवेगं भंते ! महडिए जाब विसरीरेसु रुखेसु उत्रवज्जेज्जा ? ' हे भदन्त ! देवः खलु महद्धिको यावत् महाद्युतिको महाबलः, महायशाः महासौक्ष्यः किम् द्विशरीरेषु वृक्षेषु उपपधेत ! भगवानाह-हंता, उवज्जेज्जा, एवं चेव' हे गौतम ! हन्त , सत्यम् देवो द्विशरीरेषु देवाधिष्ठितक्षेषु उपपयेत, इत्यादिएवमेव-पूर्वोक्तरीत्यैव अवसेयम् . किन्तु-'नवरं इमं नाणत्तं जाव सन्निहिय महाद्युतिक, महावलवाला महायशस्वी, महासुखी, होता है-वह दो शरीरवाले पृथिवी कायरूप मणियों में क्या उत्पन्न हो सकता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- एवंवेध' जहा नागाणं' हे गौतम जैसा नागों के संबंध में कथन किया गया है, उसी प्रकार का कथन इन मणियों के विषय में भी जानना चाहिये. अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं- देवेणं भंते ! महडिए जाव विसरीरेसु रुक्खेसु उववज्जेज्जा' हे भदन्त! महाऋद्धिवाला यावत् महाधुतिवाला मलावलवाला, महोयशवाला, महाप्लखवाला, देव क्या दो शरीर वाले वृक्षों में उत्पन्न हो सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हता उववज्जेज्जा एवंचेव' हां, गौतम ! ऐसा देव दो शरीर वाले देवाधिष्ठित वृक्षों में उत्पन्न होता है इत्यादि सब कथन पूर्वोत्तरीति के अनुसार जानना મહાસુખથી સંપન્ન હોય એ દેવ, શું દેવશવ સંબંધી આયુષ્ય પૂર કરીને બે શરીરવાળા પૃથ્વીકાય રૂ૫ મણિઓમાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-" एवं चेव जहा नागाणं " गौतम! नागाना વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન આ મણિએના વિષયમાં પણ કરવું જોઈએ. गौतम स्वामी प्रश्न-" देवणं भंते । महढिए जाव बिसरीरेसु रुक्खेसु उववज्जेज्जा ?" भवन् ! मद्धिवाणी, माधुतियानी, महायशवाणे! અને મહાસુખવાળે દેવ, શું દેવભવ સંબંધી આયુષ્ય પૂરું થતાં બે શરીરવાળાં વૃક્ષામાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે ખરો? महावीर प्रसुन। उत्तर-" हता, उववज्जेज्जा, एवं चेव" , गौतम! એ દેવ બે શરીરવાળાં દેવાધિષ્ઠિત વૃક્ષમાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. બાકીનું समस्त न पूति नागविषय: ४थन अनुसार समा. "नवरं इम
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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