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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०८ सू०१ प्रकारान्तरेण जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २८३ ज्जा, बुज्ञज्जा जाव अंतं करेज्जा ? हे भदन्त स खल्लु नागेषु उत्पन्नो देवः , तेभ्यो नागेभ्यः अनन्तरम्-ततः पश्चात् , उदृत्य-नागभवं परित्यज्येत्यर्थः किं सिद्धये तू-सिद्धिं गच्छेत् १ घु-येत-बोधं प्राप्नुयात् ? यावत्-सर्वदुःखानामन्तं कुर्यात् ? भगवानाह-'हंता, सिज्ज्ञिज्जा जावअन्तं करेज्जा' हे गौतम स नागलोकेभ्यः उदृत्य, सिध्येत् , यावत् सर्वदुःखानामन्दं कुर्यात् गौतमः पृच्छति'देवेणं भंते ! महडिए एवं चेव जाप विसरीरेसु मणीसु उववज्जेज्जा?' हे भदन्त ! देवः खल महर्दिक , एवमेव-पूर्वोक्तरीत्या, यावत्-महाद्युतिका, महावला, देवभव में जो इसके सुहृद्भुत देव होते हैं वे इसका प्रतिहार कर्म (महिमा और सत्कार) भी करते हैं. __ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-से भंते ! तोहितो अणंतरं उव्वहिता सिज्ज्ञज्जा, बुज्झेजा जाव अंतं करेज्जा'हे भदन्त! नागों में उत्पन्न हुआ वह देव उस नाग की पर्याय को छोडकर क्या सिद्धि को पा सकता है ? बोध को प्राप्त कर सकता है? यावत् समस्त दुःखों का नाश कर सकता है ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं'हंता, सिज्झिज्जा जाव अन्तं करेज्जा' हां, गौतम! वह नागलोक से निकल कर सिद्धिको पा सकता है, यावत् समस्तदुःखों का नाश कर सकता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'देवे णं भंते! महडिए एवं चेव जाव विसरीरेलु मणीसु उववज्जेज्जा' हे भदन्त ! जो देव महर्द्धिक यावत् દ્વિારા સફળ થઈ જાય છે દેવભવમાં જે તેના સહદ્દભૂત (તેના પ્રત્યે સહાનું ભૂતિ રાખનારા) દેવ હતા તેઓ પણ તેનું પ્રતિહાર કર્મ કરે છે એટલે કે તેને મહિમા ગાય છે અને સત્કાર કરે છે. शीतम स्वामीना प्रश्न-" से णं भंते ! तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता सिज्ञज्जा, बुझेज्जा, जाव अंतं करेज्जा" भगवन् ! नागामा 4-4 थयेटो त શું તે નાગની પર્યાયને છોડીને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે? બુદ્ધ થશે? મુકત થશે? અને સમસ્ત દુઃખને અંત કરી નાખશે? महावीर प्रसुन उत्तर-हता, गोयमा ! सिज्झेज्जा, जाव अंतं करेज्जा", ગૌતમ! તે દેવ નાગલેકમાંથી નીકળીને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરી શકશે, બુદ્ધ, મુક્ત આદિ થઈ શકશે અને સમસ્ત દુઃખને અન્તકર્તા પણ થઈ શકશે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" देवेणं भंते! महिड्डिए एवं चेव जाव विसरीरेसु मणीस उववज्जेज्जा" भगवन् ! भारद्धि, भडाधुति, महामण, भय भने
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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