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________________ भगवतीसूत्रे २८० , , कालेणं, तेणं समयेणं जाव एवं वयासी' तस्मिन् काले तस्मिन्समये, यावत् स्वामी मतः, धर्मकथां श्रोतुं पर्पत् निर्गच्छति, धर्मक्रथां श्रुता प्रतिगतापर्पत्, ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः प्राञ्जलिपुटः पर्युपासीनः एवं चक्ष्यमाणप्रकारेण, अत्रादी - ' देवेणं भंते ! महडिए जाव महासोक्खे अणंतरं चयं चत्ता, विसरीरेगु नागेसु उववज्जेज्जा ?' हे भदन्त । देवः खलु महर्द्धिकः, यावत् - महाद्युतिकः, महाबलः, महायशा, महासौख्यः, अनन्तरं ततः पश्चात्, चयं शरीरं च्युत्वा त्यक्त्वा देवभवात् प्रच्युत्येत्यर्थः द्विशरीरेषु-द्वेशरीरे येषां ते द्विशरीरास्तेषु ये खलु नागशरीरं परित्यज्य मनुष्यशरीरमवाप्य सेत्स्यन्ति, ते द्विशरीराः उच्यन्ते तथाविधेषु नागेषु भुजङ्गेषु उपपद्येत ? भगवानाह - हंता , प्रकारान्तर (दूसरे प्रकार) से जीवोत्पत्ति की वक्तव्यता' तेणं कालेणं तेणं समगणं' इत्यादि टीकार्थ- सूत्रकार ने इससे पहिले जीवों का उत्पाद कहा है इस उद्दे शक में भी वे इसी जीवोत्पाद को प्रकारान्तर से प्ररूपित कर रहे हैं" तेणं फालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी' उस काल और उस समय में महावीरस्वामी पधारे उनसे धर्मकथा को सुनने के लिये परिषद उनके पास आई धर्मकथा सुनकर फिर वह वापिस चली गई, इतने में प्रश्न पूछने के अभिलाषी गौतम ने दोनों हाथ जोड़कर बड़े विनय के साथ प्रभु से इसप्रकार पूछा-' देवे णं भंते ! महिड्डिए जाव महासोक्खे अनंतरं च चन्ता विसरीरेसु नागेसु उववज्जेज्जा' हे भदन्त ! जो देव महर्द्धिक है यावत् महाद्युतिवाला है, महाबलसंपन्न है, महायशोभिराम है, महासौख्यशाली है, वह देव, देव संबंधी चय- शरीर को छोड़कर अर्थात् देवभव से चव कर, दो शरीरवाले नागों में- भुजङ्गों में —જીવાની ઉત્પત્તિની ખીજે પ્રકારે વક્તવ્યતા— तेण कालेन तेण समएण " त्याहि ટીકા-આગલા સૂત્રમાં સૂત્રકારે જીવેાના ઉત્પાદનની પ્રરૂપણા કરી છે हुत्रे मा सूत्रमां सूत्रार अन्य अारे कवीत्पावनी प्र३या उरे छे-" वेण काले ते समएण जाव एवं क्यासी " ते जे भने ते समये रामगृह નામનું નગર હતુ. તે નગરમા મહાવીર પ્રભુ પધાર્યાં પરિષદ નીકળી, ધર્મકથા સાંભળીને પરિષદ પાછી ફરી ત્યાર બાદ ધર્મતત્ત્વને સમજવાની અભિલાષાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ વિનયપૂર્વક અને હાથ જોડીને, મહાવીર પ્રભુને या अमाथे प्रश्न पूछयो- " देवेण भते । महिढिए जाव महासोक्खे अनंतर चइ चहत्ता विसरीरेसु नागेसु उववरजेज्जा ” डे भगवन् ! ? देव भडद्धिक
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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