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________________ भगवतीसूत्रे कालेणं' इत्यादि । ' तेणं कालेणं, तेणं समएणं जाव एवं वयासी'-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, यावत्-राजगृहे नगरे स्वामी समरसता, धर्मकयां श्रोतुं पर्पत निर्गच्छति, धर्मकां श्रुत्वा प्रतिगता पर्पद , ततो विनयेन शुश्रूपयाणो नमस्यन् गौतमः पाञ्जलिपुट: पर्युपासीन:, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण, अनादी-'के महालए णं भंते ! लोए पण्णते ? ' हे भदन्त ! कियन्महालय:-कीविशाला खल्ल लोक: मज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा! महइमहालए लोए पण्णत्ते' हे गौतम ! महातिमंडालया-अति विशाल: लोकः प्राप्तः। तमेव लोकविस्तारमाह-'पुरस्थिमेणं हैं, अतः लोकांश में जीव के जन्ममरण की वक्तव्यता का कथन सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा किया है, इसमें गौतम ने प्रभु से जिस समय जो पूछा है-उस समय के प्रसङ्ग को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं'तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं पयासी' उस काल और उस समय में यावत् राजगृह नगर में महावीर स्वामी पधारे उनसे धर्मकथा को सुनने के लिये परिपका-जनसमूह-अपने २ घर से निकली धर्मकथा को सुनकर वह विसर्जित हो गई, तप विनय से दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न पूछने की अभिलाषावाले गौतम ने प्रभु को नमस्कार कर, इस प्रकार उनसे पूछा-'के महालए णं भंते ! लोए पण्णत्ते' हे भदन्त! कैसा विशाल यह लोक कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा'महामहालए लोए पण्णते' हे गौतम ! यह लोक अतिविशाल कहा गया है ? इस लोकविस्तार को अब सूत्रकार प्रकट करते हैं-'पुरस्थिमेणं, ગૌતમ સ્વામીએ કયારે આ વિષયને અનુલક્ષીને પ્રશ્ન પૂછે હો, તે नायना सूत्र द्वारा प्रगट ४२वामा माछ- 'वेणं कालेणं तेणं समएणं नाव एवं क्यासी" " आणे भने ते सभये नामे नगर हेतु" मा કથનથી શરૂ કરીને “ગૌતમ સ્વામીએ આ પ્રમાણે પૂછયું ત્યાં સુધીનું સમસ્ત પૂર્વોક્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ એટલે કે રાજગૃહ નગરમાં મહાવીર પ્રભુનું આગમન પરિષદનું વંદણુ નમસ્કાર માટે ગમન-ધર્મકથા * શ્રવણ કરીને પરિષદનું વિસર્જન અને ત્યાર બાદ ધર્મતત્વને જાણવાની જિજ્ઞાસાવાળા ગૌતમ સ્વામીને આ પ્રકારનો પ્રશ્ન–આ સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણું ४२७ न. “ के महालएणं भंते ! लोए पण्णत्ते" सावन् ! मासान કેટલે વિશાળ કહ્યો છે ? महावीर प्रभुना उत्तर-" महइमहालए लोए पण्णत्ते " गौतम ! | લોકને અતિવિશાળ કહ્યો છે. તેના વિસ્તારનું હવે વર્ણન કરવામાં આવે છે
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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