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________________ प्रमेववन्द्रिका टीका श०१२ उ०६ सू० ४ चन्द्रसूर्ययोरग्रमहिष्यादिनिरूपणम् २३७ षिकराजी ईशान - उपरिवर्णितान् कामभोगान् प्रत्यतु भवन्ती विहरतः - विष्ठतः । अंते गौतम भगवद्वाक्यं प्रमाणयन्नाह - 'सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव विहरह' हे भदन्त । तदेवं भक्त सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुकं सत्यमेवेति कथयन् भगवान् गौतमः श्रमण भगवन्तं महावीरं यावत्वन्दित्वा नमस्त्विा संयमेन तपसा आल्यानं भावयसानो चिहरति तिष्ठति ॥ च० ४ ॥ इति श्री विश्वविख्यात जगवल मादिपदभूपित बालब्रहाचारि 'जैनाचार्य ' पूज्यश्री घासीलालवतिविरचितायां श्री " भगवती " सूत्रस्प ममेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां द्वादशशतकस्य षष्ठोदेशकः समाप्तः ॥ ०१२-६॥ जो सरापाणो एरिसे कामभोगे पचणुग्भवमाणा विहरंति ' हे गौतम ! ये चन्द्र और सूर्य ज्योतिषिक देवों के इन्द्र और उनके राजा है, अनः ये उपर्युक्त कामभोगों को भोगते हैं । अब अन्त में गौतम भगवान् के वचनों में प्रमाणता ख्यापन करने के निमित्त कहते हैं-' सेवं भंते ! सेवं भंते! ति भगवं गोवमे समणं भगवं महावीरं जाव विहरइ' हे भदन्त | आप के द्वारा कहा गया सब यह विपय बिलकुल सत्य ही है, हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय बिलकुल सस्त्र ही है । ऐसा कहकर ये भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना एवं नमस्कार करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थानपर विराजमान हो गये ||४|| भगव जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर श्री घासीलालजी महाराज कृत तीसूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके बारहवें शतकका छठा ॥ उद्देशक समाप्त ॥ १२-६॥ 66 I रंति " हे गौतम | यन्द्र राने सूर्य ज्योतिपिअना इन्द्रो भने तेमना રાજાએ છે, તેથી તેઓ પૂર્વોક્ત કામલેગાને ભાગવે છે. ઉદ્દેશકને અન્ને भडावीर अलुना वयनने प्रभाशुभूत गणीने गौतम स्वाभी से छे - " सेवं भते ! सेव भंते । क्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर जाव विरइ " " हे ભગવન્ ! આપના દ્વારા આ વિષયનુ જે પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યુ· તે સત્ય છે હે ભગવન્! આપે જે કહ્યું તે યથાર્થ જ છે આ પ્રમાણે કહીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વણા નમસ્કાર કરીને, ભગવાન ગૌતમ સયમ અને તપથી પેાતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પેાતાના સ્થાને બેસી ગયા ।।૦૪] જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર શ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર'’ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના બારમાં શતકના છઠ્ઠો ઉદ્દેશક સમાસ ૫૧૨-૬।। ""
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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