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________________ 5 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०६ सू० ४ चन्द्रसूर्ययोरग्रमहिष्यादिनिरूपणम् २३३ बेसाए' यावत् - आभ्यन्तरतः सचित्र कर्माणि, बाशतः विचित्रालोक चिल्लिततले, गणिरत्नमणाशितान्धकारे, बहुसमसुविभक्तभागे, पञ्चवर्णसर ससुर भिक्तपुष्पपुञ्जोपचारकलिते, सुगन्धिवरगन्धिते, रत्नसूत्रसंवृते, सुरम्ये सुगन्धवरकुसुमचूर्णशयनोपचारकवि वासगृहे इति पूर्वेण सम्बन्धो वोध्यः, ता-पूर्वोक्तया, ताहश्या - परमकमनीय सौन्दर्यशालिन्या, भार्यया, शृङ्गाराकारचा रुपया-शृङ्गारस्य आकारः - आकृतिः तद्योग्यः चारुवेषः रमणीयनेपथ्यं यस्या, सा तथा, 'जाव कलियाए, अणुरत्ताए, अविरत्ताए, मणोणुकूलाए सद्धि' यावत् सचन्दनपुग्धमाल्यादिकलितया, अनुरक्तया-अनुरागवत्या, अविरक्तया - प्रियाचरणे विरक्तिरहितया, मनोनुकूलया-ममनसोऽनुकूलवर्तिया सार्द्धम् ' हे सद्दे जाव फरिसे tra eutaयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारामार वाहबेसाए सद्धि यहां यावत् शब्द से आभ्यन्तरतः सचित्रकर्माणि, बाह्यतः विचित्रालोकचिल्लिततले, मणिरत्नप्रणाशितान्धकारे, बहुसमविभक्तभागे पञ्चवर्णसर सलुरभिमुक्तपुष्पपुञ्जोपचारकलिते, सुगंधिव रगन्धिके, रत्नन्नसंवृसे, सुरम्ये, सुगन्धचरकुसुमचूर्णशयनोपचारकलिते, इस पाठ का संग्रह हुआ है । इस प्रकार के वासगृह में पूर्वोक्त परमकमनीय सौन्दर्यशाली भार्या के साथ, कि जिसका वेष साक्षात् शृङ्गार की आकृति के जैसा है 'जाब कलियाए अणुरत्ताए, अविरत्ताए, मणोणुकूलाए, ' और जो यावत्-त्रकू, चन्दन, पुष्पमाला आदि से सुशोभित हो रही है, अनुराग जिसमें भरा हुआ है, प्रिय आचरण करने में जिसके चिल में थोड़ी सी भी विरक्ति नहीं है, एवं जो पत्ति के मन के अनुकूल प्रवृत्तिबाली है 'इट्ठे सहे जाब फरिले पंचविहे माणु " 45 -- भही' ' जाव ( यावत् ) ' यह द्वारा नीचेना सूत्रपाठ श्रड अश्वामां मान्येा छे-" आभ्यन्तरतः सचित्रकर्माणि, बाह्यतः विचित्र लोकचिल्लिततले, मणिरत्नप्रणाशितान्धकारे, बहुसमसुविभक्तभागे, पञ्चवर्णस रस सुरभिमुक्तपुष्पपुञ्जोपचारफलिते, सुगंधिवरगन्धिते, रत्नसूत्रसंवृते, सुरम्ये, सुगन्धवरकुसुम चूर्णशयनोपचारकलिते " मा प्रहारना शयनम उभां पूर्वेति परमभनीय सौर्यशाली, सुहर वेषभूषाने ४१ये साक्षात् श्रृंगारनी भूर्ति देवी, "जाब कलियाए अणुस्ताए, अविरत्ताए, मणोणुकूलाए " यन्दन, पुष्पभासाभो आहि कडे सुशोभित हेभाती, જેમાં અનુરાગ ભરેલા છે એત્રી, પ્રિય આચરણુ કરવામાં જેના ચિત્તમાં સહેજે વિરક્તિ દેખાતી નથી એવી અને પતિની ઈચ્છાને અનુકૂળ પ્રવૃત્તિ કરનારી शोवी भार्यानी साथै ते पुरुष "इट्ठे, सद्दे, जाव परिसे पंचविहे माणुस्सए भ० ३०
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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