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________________ 9 प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ५ सू०२ प्राणातिपातादिविरमणनिरूपणम् १८९ अफारसा पण्णत्ता' हे गौतम! कृष्णलेश्या द्रव्यलेश्यां प्रतीत्य- आश्रित्य द्रव्यलेश्यापेक्षयेत्यर्थः पञ्चवर्णा, यावत्-द्विगन्धा, पञ्चरसा, अष्टस्पर्शा मज्ञप्ता, 'भाव लेस्सं पडुच्च अण्णा' भावलेश्याम् - जीवपरिणामं प्रतीत्य - आश्रित्य जीवपरि नामरूप भावलेश्यापेक्षया तु कृष्णलेश्या अत्रर्णा, अगन्धा, अरसा, अस्पर्शा प्रज्ञप्ता, जीवपरिणामरूपाया भावलेश्याया अमूर्ततया वर्णादिरहितत्वात् ' एवं जाव सुकलेस्सा' एवं - कृष्णलेश्योक्तरीत्या यावत् नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मश्या, शुक्ललेश्या एताः सर्वा अपि द्रव्यश्यां प्रतीत्य पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः, पञ्चरसाः, अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, भावलेश्यां प्रतीत्य तु अवर्णाः, हैं- दव्वलेस्सं पडुच्च पंचचन्ना जाव अट्ठफासा पण्णत्ता' हे गौतम ! कृष्णलेश्या द्रव्यलेश्या की अपेक्षा लेकर पांच वर्णों वाली, दो गंधोवाली, पांच रसोंवाली और आठ स्पर्शोवाली कही गई है । तथा'भावलेस्सं पडुच्च भवण्णा० ? भावलेश्या की अपेक्षा लेकर वह विना वर्णकी, विना गंध की, विना रस की और विना स्पर्श की कही गई है । क्योंकि भावलेश्या जीव के परिणामरूप होती है और जीव का परिणाम अमूर्त कहा गया है इसलिये अमूर्त में वर्णादिरहितता होती है । ' एवं जाव सुक्कलेस्सा० ' कृष्णलेश्या में जैसा यह कथन किया गया है उसी प्रकार का कथन यावत्-नीललेश्या, कापोतलेइया, तेजोलेश्या, पद्मा एवं शुललेया इन सब लेइयाओं में जानना चाहिये अर्थात् ये श्याएँ द्रव्या की अपेक्षा पांच वर्णों वाली, दो गंधोंवाली, पांचसौवाली और आठ स्पर्शोवाली कही गई हैं। तथा भावलेश्या. 66 t • दव्वलेस्स पडुच्च पंचवन्ना जाव अटुफोसा पण्णत्ता " द्रव्यवेश्यानी अपेक्षाओ વિચાર કરવામાં આવે, તા કૃષ્ણુલેશ્યા પાંચ ઘુંવાળી, એ ગધાવાળી, પાંચ रसोवाणी मने माह स्थशवाजी, होय छे तथा - " भावलेस्सं पडुच्च अवण्णा०" ભાવલેશ્યાની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે, તે તે વણુ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શ વિનાની હોય છે, કારણ કે ભાવવૈશ્યા જીવના પરિણામ રૂપ હોય, છે અમે જીવના પરિણામને અમૂર્ત કહ્યુ' છે. તેથી અમૃત માં વણુદિના સદ્ભાવ होतो. नथी. " एवं जाव सुक्कलेस्सा" पृ॒ष्णुद्देश्याना वर्णाहिना विषयभां नेषु उथन उरवामां भाव्यु' छे, मेधुं ४ अथन नीसवेश्या, अयातोश्या, तेलेबेश्या, પદ્મવેશ્યા અને શુકલલેશ્યાના વદિ વિષે સમજવું એટલે કે દ્રશ્યલેશ્યાની અપેક્ષાએ આ બધી લેશ્યાઓને પાંચવણુ વાળી, એ ગધવાળી, પાંચ રસવાળી અને માઠ સ્પર્શવાળી કહી છે તથા ભાવલેશ્યાની અપેક્ષાએ તેમને
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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