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________________ भगवती सूत्रे ૨૮૪ - पेक्षयेत्यर्थः तथैव नैरयिकवदेव, अवर्णाः, अगन्धाः, अरसा, अस्पर्शाः अवसेयाः । ' एवं जाव चउरिदिया० ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत्- अप्रकायिकाः, तेजस्कायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, एकेन्द्रियाः द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः औदारिकतैनसशरीराणि प्रतीत्य - आश्रित्य पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः पञ्चरसाः, अष्टस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, कार्मणशरीरं प्रतीत्य - आश्रित्य पञ्चवर्णाः, द्विगन्धाः, पञ्चरसाः, चतु:स्पर्शाः प्रज्ञप्ताः, जीवं प्रतीत्य - आश्रित्य तु अवर्णाः, अगन्धाः, अरसाः, अस्पर्शाः प्रज्ञप्ताः इति भावः । ' नवरं वाउकाइया ओरालियवे उच्चियतेयगाई पडुच्च पंचवन्ना, जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं' नवरम् - पृथिवीकायिकाद्यपेक्षया विशेषस्तु वायुकायिकाः औदारिकवैक्रियतैजसानि शरीराणि, प्रतीत्यतथा जीव की अपेक्षा से पृथिवीकायिक जीव नैरयिक के जैसा ही विना वर्ण के, विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के कहे गये हैं । ' एवं जाव चउरिंदिया० ' इसी प्रकार से अपकायिक, तैजस्कायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय औदारिक तैजस शरीर के पुगलों की अपेक्षा से पांच वर्णोंवाले, दो गंधोंवाले, पांच रसवाले और आठ स्पर्शो वाले होते हैं, तथा कार्मणशरीर की अपेक्षा से पांच वर्णोंवाले, दो गंधोंवाले, पांच रसोंवाले और चार स्पर्शो वाले होते हैं, एवं 'जीवं पडुच्च' जीव की अपेक्षा से विना वर्ण के, विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के होते हैं। 'नवरं वाउक्काहया ओरालियवे उब्वियतेयगाइं पडुच्च पंचवन्ना, जाव अट्ठफासा, पण्णत्ता' सेसं जहा नेरइयाणं' पृथिवीकायिक की वक्तव्यता की अपेक्षा से वायुकायिक की वक्तव्यता में यदि अन्तर है तो અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે, તા નારકાની જેમ પૃથ્વીકાયિક જીવા વણુ - रहित, एसेरडित भने स्पर्शरडित होय छे. " एवं जाव चठरिंदिया " न પ્રમાણે અકાયિક, તૈજસ્છાયિક, વનસ્પતિકાયિક તથા દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીવા, ઔદારિક અને તૈજસ શરીરનાં પુદ્ગલેની અપેક્ષાએ પાંચ વર્ષોંવાળા, એ ગધેાવાળા, પાંચ સેાવાળા અને આઠ સ્પશેવાળા હાય છે, તથા કામણુશરીરની અપેક્ષાએ તે પાંચ વાંવાળા, એ ગંધાવાળા, પાંચ श्सोवाणा भने यार स्पर्शोवाजा होय छे " जीवं पहुच ” અને જીવની અપેક્ષાએ તેઓ વણુ રહિત, ગંધરહિત, રસરહિત અને સ્પરહિત ડાય છે. " नवरं वाउकाइया ओरालियवे उब्वियतेयगाईं पदुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पण्णत्ता, सेसं जहा नेरइयाणं " पृथ्वी अयिोना वर्षाहिना स्थन उरतां वायुકાચિકાના નદિના કથનમાં એવી વિશેષતા છે કે વાયુકાયિક વાઔદા
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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