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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० २ संहननभेदेन पुद्गलपरिवर्तननि. १२७ रिकपुद्गलपरिवर्तोऽतीतो नास्ति, अनागतो वा तत्परिवर्ती नास्ति एकोऽपि, इति भावः। 'पुढविकाइयत्त पुच्छा' हे भदन्त ! नैरयिकाणां पृथिवीकायिकत्वे अतीतकालसम्बन्धिनि कियन्तः औदारिकपुद्गलपरिवाः अतीताः? इति गौतमस्य पृच्छा-प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा ! अणंता' हे गौतम ! नैरयिकाणाम् अतीतकालसम्बन्धिनि पृथिवीकायिकत्वे अनन्ताः औदारिकपुद्गलपरिवर्ताः अतीताः सन्ति, गौतमः पृच्छति-'केवइया पुरेक्खडा?' हे भदन्त । नैरयिकाणाम् अनागतकालसम्बन्धिनि पृथिवीकायिकत्वे कियन्तः औदारिकपुद्गलपरिवर्ताः पुरस्कृताः-भविष्यन्तः सन्ति ? भगवानाह-'अणंता' हे गौनम ! नैरयिकाणाम् अनागतकालसम्बन्धिनि पृथिवीकायिकत्वे अनन्ताः औदारिकपुद्गलपरिवर्ताः नैरपिकों को औदारिकपुगलों के ग्रहण के अभाव में उसको परिवर्तका भी प्रभाव है, इस कारण एक भी औदारिकपरिवर्त अतीत नहीं है, इसी प्रकार यहां अनागत भी एक भी औदारिकपुद्गलपरिचत नहीं है। 'पुढविकाइयत्ते पुच्छा' हे भदन्त! नरथिकों के अतीतकाल संबंधी पृथिवीकायिकभव में कितने औदारिकपुद्गलपरिवर्त हुए हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! अणंता' हे गौतम! नैरयिकों के अतीतकाल संबंधी पृथिवीकायिक भव में अनंत औदारिकपुद्गलपरिवर्त हुए हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं केवइया पुरेक्खडा' हे भदन्त ! नैरयिकों को अनागतकाल संबंधी पृथिवीकायिक भव में कितने औदारिकपुद्गलपरिवर्त होंगे? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'अणंता' हे गौतम । नैरयिकों को अनागतकाल संबंधी पृथिवीकायिक भव में ભમાં પણ નારકમાં ઔદારિક પુદ્ગલેના ગ્રહણને અભાવ હોય છે. તે કારણે ભૂતકાળ સંબંધી એક પણ દારિક પુલપરિવર્તને સદ્ભાવ છે તે નથી અને ભવિષ્યકાળ સંબંધી એક પણ દારિક પુદ્ગલ પરિવર્તને સદ્ભાવ હોતું નથી. गौतम स्वाभाना प्रश्न-"पुढविकाइयत्ते पुच्छा" मन नारीना ભૂતકાલીન પૃથ્વીકાયિક ભવમાં કેટલા ઔદારિક પુદ્ગલ પરિવર્તન થયા હોય છે? महावीर प्रभुनी उत्तर-" गोयमा ! अणंता" है गौतम! नाना ભૂતકાલીન પૃથ્વીકાયક ભવમાં અનત ઔદારિક પગલપરિવર્ત થયા હોય છે, गौतम स्वाभाना प्रश्न-"केवइया पुरेक्खडा?" ७ मापन नाहीना ભવિષ્યકાળ સંબધી પૃથ્વીકાયિક ભવમાં કેટલા દારિક પુદ્ગલ પરિવર્તન થશે? उत्तर-" अणता" गौतम ! न. विय14 सगधी की मयि: Hqwi nid मोहारिपुदगलपरिवत थशे. "एवं जाव मणुस्सत्ते"
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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