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________________ ૦૨ भगवती सूत्रे एकस्य नैरथिकस्य अनन्ताः औदारिकपुद्गल परिवर्तः अतीवाः अतीतकालस्य अनादित्वात्, जीवस्य चानादित्वात्, अपरापरपुद्गलग्रहणस्वरूपत्वाच्च । गौतमः पृच्छति - ' केवइया पुरेक्खडा?' हे भदन्त ! एकैकस्य नैरविकस्य कियन्तः औदारिकपुद्गल परिवर्तः पुरस्कृताः - भविष्यत्कालमाविनः इति प्रश्नः भगवानाह - 'कस्सा अस्थि, फस्सइ नत्थि ' हे गौतम । कस्यचित् नैरयिकस्य औदारिकपुदग परिवर्ती भविष्यत्कालमात्र नास्ति, नरकादितः उनृत्य यो मानुपत्वं प्राप्य सिद्धिं यास्यति, यश्च संख्येयैरसंख्येयेव भवैः सिद्धि यास्यति, तस्यापि औदारिकपुगल परिवर्त किये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'अता, हे गौतम! एक २ नैरयिक के अनन्त औदारिक पुगल परि हो चुके हैं। क्योंकि अतीतकाल अनादि है, और जीव भी अनादि है तथा जीव की संसारदशा में अपरापर पुद्गल ग्रहण करने की स्वरू• पता है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'केवड्यापुरे क्खडा' हे भदन्त ! एक एक नारक के भविष्यत्काल भावी कितने औदारिक पुद्गल परिवर्त हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'कस्सइ अस्थि' कस्सह नस्थि' हे गौतम! दूरभविक होने से और अभव्य होने से किसी नारकजीव को भविष्यकालभावी औदारिक परिवर्त है और किसी नारकजीव को भवि surare भावी औदारिकपुद्गलपरिवर्त नहीं है क्योंकि जो जीव नरकादि से निकल करके मनुष्य भव लेकर सिद्धि प्राप्त करेगा उसको या संख्यान, असंख्यात भवों के बाद जो सिद्धि प्राप्त करेगा उसके भी महावीर अलुन। उत्तर- " अनंता " हे गौतम! शेड शेड नारम्भां અતત પુદ્ગલપરિવત થઈ ચુકયા છે, કારણ કે અતીતકાળ અનાદિ છે, અને જીવ પણ અનાદિ છે તથા જીવની સ'સ રદશામાં અપરાપર પુદ્ગલ ગ્રતુણુ कुरवानी स्वयता (स'लवितता ) छे. गौतम स्वाभीना प्रश्न - केवइया पुरेक्खडा ?” हे भगवन् ! ये નારકના ભવિષ્યકાળભાવી કેટલા ઔદારિક પુદ્ગલપરિવત કહ્યા છે ? મહાવીર પ્રભુના ઉત્તર- - 'करसइ अस्थि, कस्सइ नत्थि " हे गौतम ! ફૂલવિક અને અભવ્ય હાવાને કારણે કાઇ નારક જીવમાં ભવિષ્યકાળભાવી ઔદારિક પુદ્ગલપરિવત ના સદ્ભાવ હાય છે, અને કાઇ નારક જીવમાં ભવિ ષ્યકાળભાવી ઔદ્યારિક પુદ્ગલપરિવતના સદ્ભાવ હાતા નથી, કારણ કે જે જીવ નરકાદ્રિમાંથી નીકળીને મનુષ્ય ભવમાં ઉત્પન્ન થઇને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે તેમનામાં તથા સખ્યાત અથવા અસખ્યાત ભવા કરીને સિદ્ધિ પ્રાપ્ત કરશે.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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