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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० २ संहननभेदेन पुलपरिवर्तननि. १०१ परियट्टे, वेउब्वियपोग्गलपरियट्टे, तेयापोग्गलपरियट्टे, कम्मापोग्गलपरियट्टे, मणपोग्गलपरियट्टे, वइपोग्गलपरियहे, आणापाणुपोग्गलपरियडे' तद्यथा - औदारिकपुद् गल परिवर्तः, वैक्रियपुद् गलपरिवर्तः, तेजस पुद् गलपरिवतः कार्मणपुद्गलपरिवर्तः, मनःपुद्गलपरिवर्तः वचः पुद्गलपरिवर्तः, आनमाण पुद्गल परिवर्तः श्वासोच्छवास पुद्गल परिवर्तः इत्यर्थः, 'एवं जाव वैमाणियाणं एवं पूर्वोक्तनैरयिक जीवपुद्गल परिवर्तरीत्या यावत्-वैमानिकानां वैमानिक देवपर्यन्तानां पुद्गल परिवर्त्ती वाच्यः, गौतमः पृच्छति - ' एगमेगस्स णं भंते । नेरइयस्स केवइया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अईया ?' हे भदन्त ! एकैकस्य खल नैरयिकस्य कियन्तः औदारिकपुद् गल परिवर्ताः अतीताः - व्यतिक्रान्ताः ? भगवानाह - 'अनंता' हे गौतम! कहा गया है । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं - 'ओरालियपोगलपरिre, drauपोलपरियडे तेयो पोग्गलपरियहे, कम्मा पोग्गलपरिपट्टे, मणपोग्गल परियहे' वइपोग्गलपरियडे, आणापाणुपोग्ालपरियट्टे,' औदारिकपुद्गल परिवर्त, वैक्रियपुद्गलपरिवर्त तैजस पुद्गलपरिवर्त कार्मणपुल परिवर्त, मनःपुद्गलपरिवर्त वचःपुद्गल परिवर्त और आनप्राण पुद्गल परिवर्त, आनप्राणपुद्गल परिवर्त का नाम श्वासोच्छवोस पुलपरिवर्त भी है ' एवं जीव वैमाणियाणं', जिस प्रकार से नैयरिक जीवों के पुद्गल परिवर्त कहा गया है उसी प्रकार से यावत् वैमानिकदेव पन्त के पुद्गलपरिवर्तक कहना चाहिये । अब गौतम प्रभु से पूछते हैं 'एग मेगस्स णं भंते! नेरइयम्स केवइया ओरालियपोग्गल परियहा अईया' हे भदन्त ! एक एक नैरिक को कितने औदारिकपुदगल परिवर्त हो चुके हैं ? अर्थात् एक एक नैरिकने कितने नीचे प्रमाऐ छे–“ओरा लियपोगगलपरियट्टे, वेडव्वियपोग्गल परियट्टे, तेयापोग्गल परि थट्टे, कम्मापोग्गलपारयट्टे, मणपोग्गलपरियट्टे, वइपोग्गलपरियट्टे आणापाणुपोग्गलपरियट्टे ” (१) मोहारिभ्युद्गलपरिवर्त, (२) वैडिययुगा परिवर्त, (3) तै. सयुगस परिवर्त', (४) अभ् युयुगपरिवर्त, (५) मनःयुगसपरिवर्त, (६) વચનપુદ્ગલપરિવત, અને (૭) આનપ્રાણપુદ્ગલપરિવર્ત આનપ્રાણપુદ્ગલપરિવર્તનું ખીજું નામ શ્વાસેાશ્ર્વાસ પુદ્ગલપરિવત પણ છે. વમાનિક દેવ પતના જીવેાના પુદ્ગલપવિત વિષે નારકાના પુદ્ગલપિરવતના જેવુ' જ થન સમજવું, " गौतम स्वाभीना प्रश्न - " एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवइया ओरा लियपोग्रालपरियट्टा " हे लगनन् ! थोड येऊ નારકના કેટલા ઔદારિક પુદ્ગલપરિવત થઈ ચુકયા છે? એટલે કે એક એક નારકે કેટલા ઔદારિક પુદ્ગલપરિવત કર્યો છે ?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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