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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ ७० २ ० ३ जयन्त्याः प्रश्नोत्तरवर्णमभू 666 ૭૪૨ वृद्धाः दृढबन्धनबद्धाः प्रकरोति' इत्यादि यावत् चातुरन्त संसारकान्तारम् अनुपति" इतिपर्यन्त वाच्यम्, 'एवं चर्विखदियवसट्टे वि एव जाब फासिंदियसट्टे जाव अणुपरियट्टइ' एवं श्रोत्रेन्द्रियवशातयदेव चक्षुरिन्द्रियवशार्तोऽपि एव - यावत्- घाणेन्द्रियवशातः, जिवेन्द्रियवशातः, स्पर्शेन्द्रियवशातच जीवः क्रोधवशार्तजीववदेव विज्ञेयः यावत् चातुरन्त संसारकान्तारम् अनुपर्यटति । 'तएगं सा जयंती समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमड सोच्चा निसम्म तुट्ठा से जहा देवाणंदाए तहेव पव्वइया जान सव्वदुक्खप्पीणा' ततः खलु सा जयन्ती श्रमणोपासका श्रमणरय भगवतो महावीरस्य अन्तिके - समीपे, एतमर्थम् - पूर्वोक्तार्थं सर्वं श्रखा, निशम्य हृदि अवधार्य, हृष्टतुष्टा शेर्पा " - यों को जो शिथिल बन्धन से बद्र हुई होती हैं दृढबन्धन से वद्ध करता है, इत्यादि कथन से लेकर वह चातुरन्त चतुर्गतिरूप संसार कान्तार में परिभ्रमण करता है । इसी प्रकार से 'चक्षुइन्द्रिय के वशवर्ती हुआ, घ्राणेन्द्रिय के वशवर्ती हुआ और स्पर्शनइन्द्रिय के वशवर्ती हुआ जीव क्रोध के वशवर्ती हुए जीन की तरह ही आयुकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को जो शिथिलन्धर से यह करता है दृढबन्धन से बद्ध करता है और वह चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण करता है । 'तएणं ला जयंती ! समणोवासिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टा सेसं जहा देवानंदाए तहेव पञ्चइया जाब सन्वदुक्खपहीणा' इसके बाद श्रमणोपासका जयन्तीने श्रमण भगवान् महावीर के पास पूर्वोक्त सब अर्थ को सुनकर के, और उसका मनन करके बड़ी हर्षित - દેહ બન્ધવાળી કરે છે, ઈત્યાદિ કથન અહી' પણ શ્રણ કરવાનું છે. એવે જીવ ચાર ગતિવાળા સસારકાન્તરમાં પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે,'' આ કથન પન્તનુ પૂર્ણાંકત કથન અહી' ગ્રહણુ કરવુ જોઇએ એજ પ્રમાણે ચક્ષુઇન્દ્રિયને, ઘ્રાણેન્દ્રિયને, જિહવાઈન્દ્રિયને અને સ્પર્શેન્દ્રિયને વશવતી અનેલે જીવ પણ ક્રોધને વશવર્તી અનેલા જીવની જેમ આયુકમ સિવાયની સાતે ક`પ્ર કૃતિઓને શિથિલને ખદલે દૃઢ ખધવાળી ખનાવે છે અને ચાર ગતિ રૂપ સ'સારમાં પરિભ્રમણ કર્યાં કરે છે. तएण सा जयंती समणोवालिया समणस्स भगवओ महावीररस अंतिए एमट्ठ खोच्चा निसम्म हट्ठट्ठा सेसं जहा देवाणंदाए तहेव पव्वइया जाव सव्वदुक्खपहीणा" श्रभ्यु ભગવાન મહાવીરની સમક્ષ પૂર્વકત વિષયનું પ્રતિપાદન શ્રવણુ કરીને અને તે ખાબતમા મનન કરીને શ્રમણેાપાસિકા 66
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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