SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 740
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१६ भगवतीले प्रत्यर्पयन्ति, 'तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं बहाया कय. वलिकम्मा नाव सरीरा बहूहिं खुज्जाहि जाव अंदेउराओ निग्गच्छइ' ततः खल सा मृगावती देवी जयन्त्या श्रमणोपासिकया सार्द्धम् , स्नाता-कृतस्नाना, कृत. बलिकर्मा, दत्तवायसाधन्ना यावत्-अल्पमहार्धाभरणालंकृतशरीरा, वहीमि:अनेकाभिः, कुब्जाभिः, याचद-दासीभिः सह परिसृता अन्तःपुरातू निर्गच्छति, निग्गच्छित्ता, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्तचा जाब दुरूढा' अन्त पुरा निर्गत्य, यत्रैव बाह्या उप, स्थानशालाः आसीत् यत्रैव धार्मिकं यानप्रवरम् आसीत् , तत्रैवोरागच्छति, उपा. गत्य, यावत्-धार्मिकं यानपवरम् आरूढा-आरूढवती । 'तएणं सा मियावई देवी 'तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोधासियाए सद्धि पहाया, कएपलिकम्मा जाव सरीरा यहिं खुज्जाहिं जाच अंतेउराओ निग्गच्छा, इसके बाद वह मृगावती देवी जयन्ती श्रमणोपासिका के साथ स्नान करके और काज्ञादि के लिये अन्नदेने रूप पलिकर्म करके यावत् . अल्प भार वाले आभूषणों ले जो कि बहुत अधिक कीमत के थे अपने शरीर को अलंकृत करके अनेक कुब्ज दासियों से युक्त होकर अंतःपुर से निकली-'निग्गच्छित्ता जेणेव चाहिरिया उवठ्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छ' निकलकर वह जहां बाहर में उपस्थानशाला थी और जहां वह धार्मिक यान प्रवर था वहां पर आई उवागच्छन्ता जाव दुल्हा वहां आकर वह उस धार्षिक यान प्रवर पर सवार हो गई 'तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए युमने मा पातनी भृगावती देवी भण२ माथी "तएण सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धि ण्हाया, कयय लिकम्मा जाव सरीरा बहूहि खुज्जाहिं जाव अंतेउराओ णिगच्छइ" त्या२ मा भृापती हेवी यती શ્રમણે પાસિકા સાથે સ્નાન કર્યું, વાયસેને અન્ન દાન દેવારૂપ બલિકમ આદિ પૂર્વોક્ત ક્રિયાઓ કરી ત્યાર બાદ વજનમાં હલકાં પણ અતિ મૂલ્યવાન આભૂષણથી પિતાના શરીરને વિભૂષિત કરીને, અનેક કુજ દાસીએથી વીંટળાયેલી એવી તે મૃગાવતી દેવી જયન્તી શ્રાવિકા સાથે અંતઃપુરમાંથી मा२ नाणी. " जिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवढाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ " यांची नीजीने महार ज्या ५स्थानमा (समाभ७५) ती भने न्यायामि श्रेष्ठ यान हेतु, त्यां ते पहांयी "उवागच्छित्ता जाव दुरुढा" त्यi ने ते यती श्रावि साथे तभी मेडी. “तएण
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy