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________________ ७१४ भगवतीसूत्रे 'तएणं सा जयंतीसमणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्टा' ततः खलु सा जयन्ती श्रमणोपासिका अस्याः भगवतः समवसरणरूपायाः कथायाः बधार्थी-ज्ञातार्था सती हस्तृष्टा भूत्वा जेणेव, मियावई देवी, तेणेव उवागकुछ।' यत्रैव मृगावती देवी आसीत् तत्रैवोपागच्छति, ‘उवागच्छित्ता, मियावई देवि एवं वयागी'-उपागत्य मृगावती देवीम् , एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादी'एन, जदा नामसए उसभदत्तो जाव भविस्सइ' एवं-पूर्वोक्तरीत्या-यथा नवमशतके अयस्त्रिंशत्तमोद्देशके ऋषभदत्तप्रकरणे प्रतिपादितं तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम् , यावत्श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य दर्शनम् आत्मनः कल्याणार्थ भविष्यति । 'तएणं सा नियावई देवी जयतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव पडिमुणेइ । ततः खलु सा मृगावती देवी जयन्त्याः श्रमणोपासिकायाः वचनं-यथा नवमशतके करने लगे। 'तएणं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लट्ठा समाणी हट्टतुट्ठा' इसके बाद जयन्ती श्रमणोपासिका को जब महावीर स्वामी के आने की खबर पड़ी तब वह बहुत अधिक हर्षित हुई और 'जेणेव मियावई, देवी तेणेव उवागच्छह जहाँ मृगावती देवी थी वहीं पर पहुंची ' उयागच्छित्ता मियावहं देवि एवं वयासी' वहां पहुंच कर उसने मृगावती देवी से इस प्रकार कहा-' एवं जहा नवमसए उसभदत्तो जाव भविस्सह' यहां पर जैसा कथन पहिले नौवें शतक में ३३वें शक में ऋषभदत्तप्रकरण में कहा गया है वैसा ही कथन यहां पर भी करना चाहिये-यावत् श्रमण भगवान् महावीर के दर्शन अपने करपाण के निमित्त होंगे। 'तरणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाय पडिसुणेई' इस प्रकार अमणोपासिका __ "तएणं सा जयंती समणोवासिया इमीसे कहाए लढा समाणी तु?" તે નગરમાં વસતી જયંતી પ્રમાણે પાસિકાને પણ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના अमापार Me on & भने सतोष यया, गने “जेणेव मियावई देवी, तेणेब, उवागच्छद" ते ज्यां भापती देवी ती त्यांग" उनागच्छित्ता मियावई देवि एव वयासी" त्याने ते भृगावती देवान मा प्रभारी ४थु" एवं जहा नवमसए उसंभदत्तो जाव भविस्पद" नवमां शतना 33 देशमा ઋષભદત્તના પ્રકરણ આ વિષયને અનુલક્ષીને જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું કથન અહીં પર્ણ ગ્રહણ કરવાનું છે “શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના દર્શને આપણા કલ્યાણનું નિમિત્ત બનશે.” આ કથન પર્યાનું સમસ્ત डित ४थन मी हा ४२ . " तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए जहा देवाणंदा जाव परिसुणेइ" २१ शत पमहत्तना मा
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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