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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ ३०१ सू० ४ शह्वश्रावकचरितनिरूपणम् ७०१ वक्ष्यमाणप्रकारेण अबादील- 'पभ्रूणं भंते । संखे समणोबासए देवाणुप्पियाणं अंतिए ! से जहा इसिभरपुत्तरस जाव अंत काहिद' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः खल, किम् शङ्खः श्रमणोपासकः देवानुप्रियाणाम् अन्तिके प्रव्रज्यां ग्रहीतुम् ? भग वानाह-हे. गौतम'! शेपं सर्व यथा एकादशशत के द्वादशोदेशके, अधिक्षद्रपुत्रस्य प्रतिपादनाम् कृत तथैव अस्यापि शङ्खस्य प्रतिपादनं कर्तव्यम् यावत् सर्वदुःखानामन्तं करिष्यत्ति तथाच-यथा ऋषिमंद्रपुत्र-श्रमणोपासका बहुमिः शीलवत-गुणव्रत-विरभण--प्रत्याख्यान-पौषधोपनासैः यथा पतिगृहीत स्वपः कर्मभिः भात्मानं भावयन् बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा मासिक्या संलेखनया नमस्कार किया, बन्दना नमस्कार करके फिर उन्हों से ऐसा पूछा-'पभू णं भंते ! संखे संगणोबासए देवाणुपियाणं आतिए, सेस जहा इसिभहपुत्रास्ल जाव असं काहिह' हे अंदन्त ! श्रमणोपासक शेख आप देवानुप्रिय केपाल च्या दीक्षित होकर के यावत् समरत दालों का अन्त करेगा ? इसके उत्तर में प्र कहते हैं-हे गौतम ऋषिभद्रपुत्र की तरह-नके विषय में भी कश्चन जानना चाहिये इनका प्रतिपादन ग्यारहवे शतक के बारहवें उद्देशक में किया गया है । इस प्रकार से । जैसा उन्होने समस्त दु:खों का अन्त किया है-उसी प्रकार से ये शंख श्रमणोपासक भी समस्त दुःखों के अंलक्षा होंगे। तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से अमणोपासक ऋषिभद्र पुत्र धारण किये हुए अनेक शीजनत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपचासों से आत्मा को सावित करते हुए अनेक वर्षो से श्रमणोपासक पर्याय का पालन करते. आरहे हैं और पालन करके वे मासिको संलेखना धारण “पमण मंते ! सखे समणोवासए देवाणुप्पियाण अंतिए, सेस जहा इसिभहपुत्तस्स जाव अन का हिइ ” मगवन्! शु श्रमपास २५ मा५ देवानुप्रियती पासे क्षित यधने (यावत् ) समस्त गाना मत ४२शे ? ઉત્તર–હા, ગૌતમ ! ઋષિભદ્રપુત્રના વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવુ જ કથન શંખ શ્રાવક વિષે પણ સમજવું અગિયારમાં શતકના બારમાં ઉદ્દેશકમાં ઋષિભદ્રપુત્રનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે તે જેવી રીતે નિર્વાણ પામ્યા, એવી જ રીતે શખ શ્રાવક પણ દિક્ષા લઈને અનેક તપની આરાધના કરીને નિર્વાણ પામશે આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે જે પ્રકારે શ્રી પાસક ઋષિભદ્ર પુત્ર ધારણ કરેલા અનેક શીલવત, ગુણવત, વિરમણ, પ્રત્યાખ્યાન અને પૌષધોપવાસ વડે આત્માને ભાવિત કરતા થકા અનેક વર્ષની થપાસક પર્યાયનું પાલન કરી રહ્યા છે, અને પાલન કરીને એક માસને સ થારો કરીને અનશન દ્વારા ૬૦ ભકતોનું છેદન કરીને
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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