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________________ मगवतीको रिका-जागरणं धर्मजागरिका, वो जाग्रत:- जागरणं कृतः, अयमेत पा-क्ष्य माणस्वरूपो यावत्-आध्यात्मिकः-आत्मगतः, चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः, मनोगतः संरल्या, समुदपद्यत-समुत्पन्नः 'सेयं खलु मे कल्ले जाव जलते समणे भगवं महावीरं वंदित्ता, नमंगित्ता, जाव पज्जुवासित्ता' श्रेयः खलु मम कल्ये मभाने यांवर-मादुष्मभायां रजन्यां सूर्ये ज्वलति-उदिते प्रकाशमाने सति, श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दित्ता, नमस्थित्या, यावत्-विनयेन शुश्रूपमाणः प्रात्रलिपुटः पर्युपास्य, 'वओं पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारितए तिक एवं संपेहे' ततः प्रतिनि: तस्य-भगवत्पात्मित्यागतस्य मम पाक्षिकं पापधं पारयितु -पालयितुम् श्रेयः इतिकरया-एवं विचार्य, संप्रेक्षते-निश्चिनोति, 'संपेहित्ता कल्लं जाव जलते पोसहसालाओ पंडिनिक्खमई एवं रीत्या, संपेक्ष्य-निश्चित्य-कल्ये-प्रभाते, यावत्मादुष्प्रभातायां रजन्यां सूर्य ज्वलति-उदिते प्रकाशमाने सति पौषधशालातः प्रति. निष्क्राम्यति-निर्गच्छति, 'पडिनिक्वमित्ता, पौषधशालातः प्रतिनिष्क्रम्य निर्गत्य प्रकार का यह आध्यात्मिक, चिन्तित, कल्पिन, प्रार्थित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ 'सेयं खलु में कल्लं जाव जलंते समणं भगवं महावीरं बंदित्ती नमसित्ता जाव पज्जुवासित्ता' मुझे अथ यही उचित है कि में प्राता कील होते ही सूर्य के प्रकाशित हो जाने पर श्रमण भगवान् ! महावीर के पास जाकर उनको वदना नमस्कार करके यावत् उन की पर्यपासनों करके तओ पडिनियत्तस्स पक्खि पोसहं पारिसए ति कटु एवं संपेहेह' वहां से वापिस लोटकर पाक्षिक पौषध पा, अर्थात-पोषे को पूणे करूँ। ऐसा विचार किया- संपेहिता कल्लं जाव जलते, पोसह. सलिाओ पडिनिक्खमद ' ऐसा विचार करके फिर वह सुबह होते ही सूर्य के प्रकाशित हो जाने पर पौषधशाला से पाहर निकला 'पडिनिक्सપાછલે પહેરે ધજાગરણ કરતાં તે શખવકને આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક शिन्तित, ४५न, प्रायित, मनोगत स४६५ ६५०।-" सेयं खलु में कई भाव जलते सगणं भगव महावीर वंदित्ता, नमपित्ता जाव पज्जुवामित्ता" હવે મને એજ ઉચિત લાગે છે કે કાલે પ્રાતઃકાળ થતાં જ, સૂર્યને પ્રકાશ ચારે તરફ ફેલાવા લાગે ત્યારે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની પાસે જઈને, तेभन नमा२ ४२ मने तमनी पर्युपासना ४रीन ' तओ परिनियत्तस्स पक्सियं पोसह पारित्तए त्ति क. एवं संपेहेइ" पाछ। श्या मा પાક્ષિક પૌષધનું મારે પારણું કરવું, આ પ્રમાણે તેણે સંકલ્પ કર્યો. "मोहिता कल्लं जाव जलने, पोसहसालाओ परिनिखमा" - प्रभार વિચાર કરીને પ્રભાત થતાં અને સૂર્યને પ્રકાશ ચાર દિશામાં ફેલાતા જ
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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