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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ १० १ सू० २ शहश्रावकचरितनिरूपणम् ६७९ युज्यते मम पौषधशालायां पौषधिकस्य यावत्-ब्रह्मचारिणः, उन्मुक्तमणिसुवर्णस्य, व्यपगतमालावर्णकविलेपनस्य, निक्षिप्तशस्त्रमुशलस्य एकस्य अद्वितीयस्य, दर्भसंस्तारकोपगतस्य पाक्षिकं पौषधं प्रतिजाग्रतः-अनुपालयतो विहर्तुम्-स्थातुम् । 'तं छंदेणं देवाणुप्पिया ! तुम्भे तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइम आसाएमाणा जाव विहरह' तत्-भो देवानुप्रियाः। छन्देन-स्वेच्छानुसारेण यूयं तत् विपुलम् अशनं पानं, खादिम, स्वादिमम् , आस्वादयन्तो यावतू-विस्वादयन्तः, परिभुखानाः, परिभाजयन्तः पाक्षिकं पौषधं प्रतिजाग्रतः अनुपालयन्तो विहरत-तिष्ठत, 'वएणं से पोक्खली समणोवासए संखस्स समणोवासगस्स अतियाओ पडिनिक्ख. मइ' ततः खलु स पुष्कलिः श्रमणोपासकः शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य अन्तिकाततए' मुझे तो अब यही कल्पता है कि मैं अकेला ही पौषधशाला में पाक्षिक पोषध का पालन करूं। इस समय में पूर्णरूप से ब्रह्मचर्यत्रत का पालन कर रहा हूं। मणि सुवर्ण का त्याग किया हुआ है, माला और विलेपन का त्याग कर दिया है । शस्त्र और मुशल को त्याग किया है। दर्भ के आसन पर बैठा हूं। इसलिये ते छंदेणं देवाणुप्पिया! तुम्भेण तं विउलं असणं पाण खाइमं साइम आसाएमाणा जाव विहरह' आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार उस विपुल, अशन, पान, खादिम और स्वादिमरूप चारों प्रकार के आहार को करते हुए आप सष पाक्षिक पौषध का पालन करो 'तएण से पोक्खली समणोवासए' फिर शंख श्रमणोपासकके ऐसे करने पर पुष्कलि श्रमणोपासक 'संखस्स समणोवासगस्स अंतियाओपडिनिक्खमह' शंख श्रमणोपासकके समीमे पोसहसालाए पोसहियस्स जाव विहरित्तए" भन तो मेरी वात ४६ छઉચિત લાગે છે કે હું એકલે જ પૌષધશાળામાં પાક્ષિક પૌષધની આરાધના કરૂં. અત્યારે હું પૂર્ણ રૂપે બ્રહ્મચર્ય વ્રતનું પાલન કરી રહ્યો છું, મેં મણિસુવર્ણનો ત્યાગ કર્યો છે, માલાવિલેપનને પણ ત્યાગ કર્યો છે, શસ્ત્ર અને भुससनी त्यास य भने सन ५२ हुमेहे। छु तथा "वे छदेण देवाणुप्पिया ! तुम्भेण विउल असण पाण खाइम साइमं आसाएमाणा जाव विहरह" मा५ सी मायनी २छानुसार ते शन, पान, माहिम मने સ્વાદિમ રૂપ ચારે પ્રકારના આહારનું આસ્વાદન આદિ કરીને પાક્ષિક પૌષधनी माराधना ४२१. __“तएणं से पोक्खळी समणोवासए " 'मश्रभास ते प्रभाव ४ा पछी ते ५०ी श्रम पास “ खस्स समगोवासगरम अंतियाओ पडिनिक्खमह"
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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