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________________ . ફર भगवती " त्रिदण्डकुण्डिकाः यावत् धातुरक्तवस्त्राणि च परिगृहाति, 'गेहेत्ता जेणेव आलभिया णयरी, जेणेव परिसव्वायगावसदे तेणेव उवागच्छ' गृहीत्वा यंत्रेव - आळमिका नगरी आसीत्, यत्रैव परिव्राजकावसथ:-संन्यासिजनाश्रमय आसीत्, तत्रैव-उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता, भंड निक्खेवं करेइ' उपागत्य, भाण्ड निक्षेपं करोति 'करेत्ता, आलभियाए नगरीए सिंघाडग जात्र पसु अन्नमन्नस्स एवमाहक्खइ जात्र परूवेड़' कृत्वा, आलभिकायाः नगर्याः शृङ्गाटक यावत् त्रिकचतुष्क चश्वर महापथपथेषु अन्योन्यस्य एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण, आख्याति यावत्भापते, मज्ञापयति, प्ररूपयति- 'अस्थि णं देवाशुप्पिया ! ममं अतिसे से नाणदंसणे धाउरत्ताओ य गेव्हह्' आतापनाभूमिसे नीचे उतर कर उसने अपने : त्रिदण्ड, कुण्डिका एवं भगवा वस्त्रों को उठाया - ' रोहेत्ता जेणेव भाल भिया नगरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ ' उठाकर वह जहां आलभिका नगरी और जहां परिव्राजकों का आश्रम था वहां पर आया, ' उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेह' यहां आकर के उसने अपने उन त्रिदण्ड, कुण्डिका आदिकों को एक ओर रख दिया 'करेत्ता आलभिकायाए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु अन्नमन्नस्ल एक्साइक्खद, जाव पवेह ' एक ओर रखकर फिर वह आलभिका नगरी के श्रृंगाटक, यावत् त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ और पथ इन रास्तों में खडे हुए मनुष्यों से वह परस्पर में इस प्रकार से कहने लगा, यावत् भाषण - करने लगा, प्रज्ञापित करने लगा, और प्ररूपणा करने लगा, 'अत्थिण देवाशुपिया | ममं अइसे से नाणदंसणे समुपपन्ने' हे देवानुप्रियो | मुझे 2 <s तिडकुंडिया जाय धाउरताओ य गेण्हइ" मातायना भूमि परधी नीचे Gરીને તેણે પેાતાના ત્રિદ'ડ, કમ`ડળ, ભગવા વસ્ત્રો આદિ ઉપકરણે ને ઉપાડી લીધાં. 'गेहेत्ता जेणेव आलभिया नयरी जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ " પેાતાના તે ઉપકરણાને ગ્રહણ કરીને તે આલ'ભિકા નગરીમાં આવેલા પરિ घाना आश्रमभां मान्यो " उत्रागच्छित्ता भंडनिक्खेव करेइ ” त्यां भावीने તેણે પેાતાના તે ત્રિદંડ, કમળ આદિ ઉપકરણાને આશ્રમમાં મૂકી દીધાં. " करेत्ता आलभियाए नगरीए सिंघाडग जाव पद्देसु अन्नमन्नरस एवमाइक्खइ, जाव पुरूवेइ " त्यार याद ते आसभित्र नगरीना श्रृंगार, त्रि, यतुष्ठ, ચત્વર, મહાપથ અને પથ આદિ માર્ગો પર એકઠા થયેલાં લે કેને આ પ્રમાણે કહેવા લાગ્યા, આ પ્રમાણે ભાષણ (પ્રતિપાદન) કરવા લાગ્યા, આ પ્રમાણે अज्ञापित् ४२वा साग्यो भने म प्रमाये प्र३षणा ४२वा साज्या है “ अत्थिणं
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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