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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०११ २०१३ सू०३ ऋषिभद्रपुत्रस्य सिद्धिनिरूपणम् ६३६ एणं जाव कहिं उबवज्जिहिइ ?' हे भदन्त ! स खल्लु ऋषिभद्रपुत्रो देवस्तस्मात् देवलोकात् आयुः क्षयेण, भवक्षयेण, स्थितिक्षयेण, यावत्-अनन्तरम् चयं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति कुत्र उत्पत्स्यते ? कुत्र उत्पत्तिं लप्स्यते ? भगवानाह-'गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिह जाव अंतं काहेइ' हे गौतम ! स ऋषिभद्रपुत्रो देवस्तस्माद् देवलोकात् न्युत्वा महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति, यावत्-भोत्स्यते, मोक्ष्यते परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति । अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं सत्यापर्यमाह-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे जात्र अप्पाण भावेमाणे विहरइ' हे भदन्त ! तदेवं-भवदुक्तं सर्व सत्यमेव, हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सर्व सत्यमेव, ठिइक्वएणं जाव फहिं उधज्जिहिह' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! ऋषिभद्रपुन देव उस देवलोक से आयु के क्षय से, भवकै क्षय से और स्थिति के क्षय से देवभव संबंधी शरीर का परित्याग कर कहां पर जायगा, कहां पर उत्पन्न होगा इसके उत्तर में प्रभु ने कहा'गोयमा ! महाविदेहे वाले सिज्झिहिड, जाव अंतं काहेइ ' हे गौतम! वह ऋषिभद्रपुत्र देव उस देवलोक से चलकर महाविदेहक्षेत्र में सिद्धिप्राप्त करेगा यावत्-अपने केवलज्ञान ले समस्त वस्तुओं का ज्ञाता होगा, समस्त कर्मों से सर्वथा रहित होगा और समस्त दुःखों का अन्त करेगा अन्त में गौतम भगवान के वचनों में सत्यता ख्यापन करने के लिये कहते हैं-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ' हे भदन्त ! आपके द्वारा प्रतिपादित हुआ यह सब કષિભદ્રપુત્રના તે દેવલેક સંબંધી આયુને ક્ષય થતાં, ભવને ક્ષય થતાં, સ્થિતિને ક્ષયથતાં, દેવભવ સંબંધી શરીરને પરિત્યાગ કરીને કયાં જશે, કયાં ઉત્પન્ન થશે? ___महावीर प्रसुन उत्तर-" गोयमा! महाविदेहे वासे सिडिझहिइ, जाव अंत 'काहेइ" गौतम ऋषिभद्र पुत्र सौषम समांथी व्यवीर महावि ક્ષેત્રમાં મનુષ્ય રૂપે ઉત્પન્ન થશે, ત્યા કેવળજ્ઞાનથી તે સમસ્ત વરતુઓને જોઈ શકશે, સમસ્ત કર્મોથી સર્વથા રહિત થશે, અને સમસ્ત દુઓને અન્ય કરી નાખશે. એટલે કે તેઓ સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુક્ત, પરિનિર્વાત થશે અને સમસ્ત શારી રિક અને માનસિક ૬ થી રહિત એવા નિર્વાણ પદને પામશે સૂત્રને અને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુનાં વચનને પ્રમાણભૂત ગણીને તેમના પ્રત્યે पातानी मा२ श्रद्धा ०५४ २di | छ-" सेवं भंते ' सेवं भते ! ति भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ " मगवन् !मा विषय
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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