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________________ भगवतीले नापितं च शब्दयितुम् , इत्यादिरीत्या जमालिपकरणोक्तवदेव सर्वमत्रापि दीक्षाग्रहणपर्यन्तम् अवसेयम् , 'तरण से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतिए सामाइयमाइयाई चोद्दसपुच्चाई अहिज्जई' ततः खलु-दीक्षाग्रहणानतरम् , स महाबलः अनगारः, धर्मघोपस्य अनगारस्य अन्तिके-समीपे सामायिकादीनि चतुर्दशपूर्वाणि, अधीते, 'अहिज्जित्ता वहूर्हि चउत्थ जाब विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाण भावेमाणे बहुपडिपुन्नाई दुवालसवामाई सामन्नपरियागं पाउणई' अधीत्य-चतुईशपूर्वाणि पठित्वा, बहुभिस्तावत्-अनेकैः, चतुर्थभक्त यावत्-पाठाप्टमादिभक्तः विचित्रैः-नानाकारकैः, तपः कर्मभिः, आत्मानं भावयन्-बहुमतिपूर्णानि द्वादशवर्षाणि, श्रामण्यपर्यायं-चारित्रपर्यायं पालयति पाउणित्ता, मासियाए संलेह णाए अत्ताण झुसित्ता सहि भत्ताइ अणसणयाए छेदेत्ता' पालयित्वा मासिक्यादें। स्वर्गलोक, मर्त्यलोक, और पाताललोक में स्थित वस्तु की प्राप्ति के स्थानविशेषरूप हट्ट का नाम कुत्रिकापण है। इसके आगे का दीक्षापर्यन्त तक का सब प्रकरण जैसा जमालि की वक्तव्यता में कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये । 'तएणं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतिए समाइयमाइयाइं चोदसपुवाई अहिजइ' इसके बाद महावल अनगार ने धर्मघोष अनगार के पास सामयिक आदि चौदहपूर्वो का अध्ययन किया ' अहिन्जित्ता बाहिं चउत्थ जाव विचित्तेहि तवोसम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुन्नाई दुवालवासाइं सामन्न. परियागं पाउणइ' अध्ययन करने के बाद फिर उन महायल अनगारने अनेक चतुर्थभक्त आदितपस्याओं से अपनी आत्मा को भावित किया इस प्रकार करते हुए उन्हों ने १२ वर्ष श्रामण्य अवस्था में रहकर 'पाउणिसा मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सर्द्धिभत्ताई अणसणाए छेदेता' મર્યલેક અને પાતાલલેકમાં રહેલી વસ્તુની પ્રાપ્તિ માટેના સ્થાનવિશેષ રૂપ હાટને કુત્રિકા પણ કહે છે. ત્યાર બાદનું દક્ષા પર્યન્તનું સમસ્ત વર્ણન જમાसीन ४२मा प्रमाणे सभा "तपण से महबले अणगारे धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतिए सामाइयमाइयाई चोदसपुवाई अहिज्जइ" त्या२ मा મહાબલ અણગારે ધર્મઘોષ અણગાર પાસે સામાયિક આદિ ૧૪ પૂર્વેનું मध्ययन यु “अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुन्नाई दुवालसवासाइ सामन्नपरियाग पाउणइ " मध्ययन शने તેમણે અનેક ક્ર, અદમ આદિ તપસ્યાઓથી પોતાના આત્માને ભાવિત या मा शत मा२ वष ५- श्रमपर्यायन पान ४शन “पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताण झुसित्ता सर्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता" मे
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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