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________________ ४२० भगवतीस्त्रे 'लोवान इति प्रसिद्धम् 'सुगंधवरगंधिए, गंधव भूए' सुगन्धवरगन्धिते-सुगन्धयः सद्गन्धाः, परगन्धा, बरवासाः सन्ति यत्र तत्तथा तरिमन्-अत्यन्तसुगन्धयुक्ते गन्धवतिभूते-सौरभ्यातिशयाद् गन्धद्रव्यगुटिकासदृशके, तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि सालिंगण वहिए' तस्मिन्-पूर्वोक्ते, ताशके-शयनीये, सालि गनवतिके-शालिङ्गनवा -शरीरममाणोपधानेन सह वर्तते यत्तत्तथा तस्मिन् , 'उभओ विब्बोयणे, दही उन्नए, मज्झेण य गंभीरे' उभयत:-मस्तकान्तपादान्तों आश्रित्य विबोकने-उपधानके यत्र तत्तथा, तस्मिन् , उभयता-उभयपातः, उन्नतेमध्ये नतगम्भीरे-मध्ये-मध्यभागे नतं-निम्नं, गम्भीरंच महत्त्वाद् यत्तत्तथा तस्मिन् , अथवा मध्येन-मध्यभागेन् गम्भीरे 'गंगापुलिनवालयउद्दालसालिसए' गङ्गापुलिनवालुकाऽवदालसदृशके-गङ्गापुलिनवालुकायाः गङ्गायाः सैकतस्य योऽवदाल:-अबदलनं पादादिभ्योऽधोगमनं तेन सदृशके, अतिमृदुत्वादितिभावः । 'उवकुन्दक-चीडा और तुरुक लोवान इनकी सुन्दर सुगंध से यह सुग. धित बना हुआ था। अतिशय सुगंधि के कारण यह देखने वालों के लिये ऐसा प्रतीत होता था कि मानों यह गन्धद्रव्य की एक गुटिका ही है। 'तंसितारिसगलि सयणिज्जंलि सालिंगनवट्टिए' ऐसे उस पूर्वोक्त निवासगृह में एक शय्या थी जो सालि जनतिक-शरीर उपधान वाली थी, 'उभयो किबोयणे दुहओ उन्नए, मज्झेण य गंभीरे दोनों ओरपैरों की तरफ और शिर की तरफ जिसके ऊपर दो उपधान-रखे थे, बड़ी होने से मध्य भाग में-बीच में जो निम्न एवं गंभीर थी. अथवाकेवल जो मध्यभाग से ही गंभीर थी 'गंगापुलिनवालुयउद्दालसालि. सए' अतिमृदु होने से जो गंगा के रेतीले प्रदेश जैली नरम थी 'पैर रखते ही जो नीचे से सरक जाती है ऐली शय्या का नाम अवदाल है' નગૃહ અત્યંત સુગધથી યુકત હોવાને કારણે સુગંધિત દ્રવ્યની ગાદી જેવું सातुडतु " तसि तारिसगसि सयणिज्जसि सालिंगनवट्टिए" मेवा ते શયનગૃહમાં એક શ્રેષ્ઠ શમ્યા હતી, જે સાલિંગન વતિક (શરીરપ્રમાણયુક્ત धानवाणी) ती, अथवा त तयाथी युत त " उभय ओ विब्बोयणे, दुहओ उन्नए, मज्झेण य गंभीरे " नी भन्ने त२५-भायं शवानी श्यामे અને પગ રાખવાની જગ્યાએ–બે ઉપધાન (તકીયા, ઓશીકાં) રાખેલાં હતા, જે મધ્યભાગમાં નિમ્ન (નીચે નમેલી) અને ગંભીર હતી, અથવા જે માત્ર मध्यमागे १ ली२ रुती, "गगापुलिनवालयउद्दालसालिसए " भात भू હોવાને લીધે જે ગગાના કાંપના પ્રદેશ જેવી હતી. (જેના પર પગ મૂકતો જ જે નીચે બેસી જાય એવી શય્યાને “અવદાલ શય્યા” કહે છે).
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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