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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श० ११ उ० ११ सू० ३ यथायुनिवृत्तिकालादिनिरूपणम् ४७५ यत् खलु येन केनचिन् नैरयिकेग वा, तिर्यग्योनिकेन वा, मनुष्येण वा, देवेन वा, यथायुष्क-यत्मकारकम् आयुष्कम् अन्तर्मुहूर्नादि यधायुष्कं निर्वतितं निबद्धम् , तदेतत् पालयन् तत्म कारकमायुष्क संरक्षन् यथायनित झालः प्रज्ञप्तः। अथ तृतीयं मरणकालमाह-सुदर्शन पृच्छति-'से कितं मरणकाले ? ' हे भदन्त ! अथ किम् स मरणकाल प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'मरणकाले, जीवो पा सरीराओ विउज्जइ सरीरं वा जीवाओ विउज्जइ सेत्तं मरणकाले' हे सुदर्शन ! मरणकालः खलु यदा जीयो वा शरीराद् वियुज्यते, शरीरं वा जीवाद् वियुज्यते, स एष, मरणकाल प्रज्ञप्तः । अथ चतुर्थमद्धाकालमाह-सुदर्शनः पृच्छति-'से कितं अद्धाकाले ?" हे भदन्त ! अपकिंस अाकाल प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-अद्धाकाले अणेगविहे पण्णते, से णं समयट्टयाए, आवलियट्टयाए, जाव उस्सप्पिणीयाए' हे सुदर्शन ! नैरयिक ने, अथवा तिर्यग्योनिक ने, अथवा मनुष्य ने, अथवा देव ने जिस प्रकार के जिस आयुष्य का अन्तमुवादिरूप से बंध किया है, उसे उसी प्रकार से संरक्षण करना-भोगना इसका नाम यथायुनिवृत्तिकाल है.। अब सुदर्शन प्रभु ले ऐसा पूछते हैं-से कितं मरणकाले' हे भदत! वह मरणकाल क्या है-अर्थात्मरणकाल का क्या स्वरूप है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'मरणकाले, जीयो वा सरीराओं विउज्जइ, सरीरं वा जीवाओ ले त मरणकाले' जीव को शरीर ले जिस काल में वियोग होता है, अथवा शरीर का जीव से जिस काल में वियोग होता है-उसका नाम सरण काल है.। ___ अब सुदर्शन प्रभु से ऐसा पूछते हैं-से कि तं अद्धाकाले' हे भदन्त ! वह अद्धाकाल क्या है ? अर्थात् पूर्वनिर्दिष्ट अद्धाकाल का क्या स्वरूप है? सके उत्तर में प्रभु ने कहा-'अद्वाकाले अणेगविहे पण्णत्ते,' सेणं અથવા મનુષ્ય અથવા દેવે જે પ્રકારના જે આયુષ્યને અન્તર્મુહર્તા િરૂપે બંધ કર્યો હોય, તેને તે પ્રકારે ભેગવવું તેનું નામ યથાયુનિવૃત્તિકાળ છે. वे सुदर्शन 28 भ२४ विष प्रश्न पूछे छ-" से कि त मरणकाले?" હે ભગવન કાળના ત્રીજા ભેદરૂપ મરણકાળનું સ્વરૂપ કેવું છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-“ मरणकाले, जीवो वा सरीराओ विउज्जइ, सरीर' या जीवाओ, से त मरणकाले" आणे अपने शरीरथी वियोग थाय छ, અથવા શરીરને જીવથી વિયોગ થાય છે, તે કાળને મરણકાળ કહે છે साशन ने प्रश्न-" से किं त अद्धाकाले" भगवन् ! ना याथा ભેદ રૂપ અદ્ધાકાળનું સ્વરૂપ કેવું છે?
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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