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________________ ४६४ भगवती राईए वा पोरिसी भवइ' जघन्यिका-सर्वतो जघन्येन त्रिमुहूर्ता-द्वादशमुहूर्त्तस्य दिवसादेश्चतुर्थोभागस्त्रिमुहूर्तों भवति, अतस्त्रयोमुहूर्ताः पयटिका यस्यां सा तथाविधा दिवसस्य वा रात्रे वा पौरुपी भवति । सुदर्शनः पृच्छति-'जयाणं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहूत्ता दिवसस्स वा, राईए वा पोरिसी भवइ, तयाणं कइभागमुहृत्तमागेण परिहायमाणी परिहायमाणी जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स बा, राईए वा पोरिसी भवई' हे भदन्त ! यदा खलु उत्कृष्टा अर्द्ध पञ्चममुहूर्ती सार्द्धकहा है। तथा दिनरात की सब से जघन्य पौरुषी का प्रमाण तीन मुहर्त का है। १२ मुहवाले दिन का अथवा १२ मुहवाली रात्रि का जो चौथा भाग है वह त्रिमुहर्तात्मक होता है। अतः सब से जघन्यपौरुषी का प्रमाण भी त्रिमुहूर्त का होता है। दो घड़ी का एक मुहूर्त होतो है। इस प्रकार तीन मुहूर्त में ६ घड़ी होती है । सो चाहे जघन्य पौरुषी का प्रमाण तीनमुहूर्त का होता है-ऐसा कहिये या वह ६ घटिका रूप होता है ऐसा कहिये दोनों एकरूप ही हैं। यह दिनरात की जघन्य पौरुषी का प्रमाण कहा । तात्पर्य कहने का यही है कि पौरुपी का अधिक से अधिक प्रमाण साढे चार मुहूर्त का होता है और कम से कम प्रमाण तीन मुहूर्त का होता है। अब सुदर्शन सेठ प्रभु से ऐसा पूछते हैं'जयाणं भंते! उक्कोसिया अद्धपंचममुहूत्ता, दिवसस्स चाराईए वा पोरिसी भवइ' हे भदन्त ! जब दिन अथवा रोत्रि की पौरुषी का प्रमाण ४॥साढे चार मुहूर्त का अधिक से अधिक होता है-अर्थात् २१६ मिनटका या नौ९ घड़ी का होना है. (तीन घंटे ३६ छत्तीस मिनट का होता है)-'तया અપેક્ષાએ ઓછામાં ઓછી લંબાઈ ૩ મુહૂર્તની હોય છે, ૧૨ મુહૂર્તવાળા દિવસને અથવા ૧૨ મુહૂર્તવાળી રાત્રિને જે ચે ભાગ (પહેરી હોય છે, તે ત્રણ મુહૂર્ત પ્રમાણ હોય છે. તેથી જઘન્ય (ટૂંકામાં ટુંકે) પહાર ત્રણ મુહૂર્તને થાય છે. બે ઘડીનું એક મુહૂર્ત થાય છે. આ રીતે ત્રણ મુહૂર્તની ૬ છ ઘડિ થાય છે. તેથી જઘન્ય પહેરનું પ્રમાણ ત્રણ મુહુર્તનું અથવા ૬ ઘડીનું સમજવું. આ દિનરાતની જઘન્ય પૌરુષી (પહેર) નું પ્રમાણ સમજવું આ સમરત કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે અધિકમાં અધિક કા મુહૂર્તને અને ઓછામાં ઓછા ૩ મુહૂર્તને એક પહેર થાય છે. सुदर्शन शहना प्रश्न-" जयाण भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ" भगवन् ! ज्यारे ६१ अथ4। रिना प्रत्ये: પહાર અધિકમાં અધિક કા મુહૂતને (૯ ઘડીને અથવા ૨૧૬ મિનિટનેથાય
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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