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________________ ४५६ भगवतीसूत्रे श्रेष्ठी त्रिविधया-त्रिमकारिकया मनोवचःकायिक्या पर्युपासनया भगवन्त पर्युपास्ते । 'तरणं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेट्ठीस्स ती से य महइ महालगाए जाव आराहए भवइ' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः सुदर्शनस्य श्रेष्ठिनः, तस्यां च महातिमहालयायां यावत् - परिषदि धर्मकथां कथयति कियस्पर्यन्तां कथयतीत्याह- 'जाव आराहए भवइ' यावत् - एतस्य धर्मस्य शिक्षायामुपस्थितः श्रमणोपासको वा श्रमणोपासिका वा विहरन् आज्ञायाः आराधको भवति, 'तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा, निसम्म हो उट्ठाए उट्ठे' ततः खलु स सुदर्शनः श्रेष्ठी श्रमणस्य भगवतो सुदर्शन सेठ ने मन वचन काय संबंधी त्रिविध पर्युपासना से भगवान् की पर्युपासना की 'तणं समणे भगवं महावीरे सुदंसणस्स सेट्ठिस्स तीसे य महहमहालघाए जाव आराहए भवद्द' इसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने उस सुदर्शन सेठ को उस विशालजन समुदायरूप सभा में धर्मोपदेश दिया. यावत् वे सुदर्शन सेठ आराधक हो गयेसच्चे श्रावक बन गये. 'जाव आराहए भवइ' इस सुत्रांश से सूत्रकार ने यह प्रकट किया है कि यहां तक प्रभु ने उन्हें उपदेश दिया उनके उपदेश में उपस्थित प्राणी - श्रमणोपासक या श्रमणो-पासिका होकर उनकी आज्ञा का आराधक हो जाता है सुदर्शन सेठ भी इसी प्रकार से प्रभु की आज्ञा के आराधक बने 'तएण से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्टो उट्ठाए उट्ठेह' મહાવીરની ત્રણ પ્રકારની યુ પાસના કરી. " तएण समणे भगव महावीरे सुदंसणस्स सेट्ठिस्स तीसे य महइमहालयाए भवइ ત્યાર માદ મહાવીર પ્રભુએ તે સુદર્શન શેઠને તથા તે અતિ વિશાળ જનસમુદાય રૂપ પ્રખદાને ધર્મોપદેશ સંભળાવ્યે. (યાવતા) તે जाव आराइए " जाव आराइए भवइ સુદર્શન શેઠ આરાધક (સાચા શ્રાવક) ખની ગયા. આ સૂત્રાંશ દ્વારા સૂત્રકારે એ વાત પ્રકટ કરી છે કે મહાવીર પ્રભુના ઉપદેશ સાંભળનાર જીવા, શ્રમણેાપાસક કે શ્રમણેાપાસિકા બનીને પ્રભુની માન્નાના આરાધક બની જતાં હતાં, એજ પ્રમાણે સુદર્શન શેઠ પણ તેમની આજ્ઞાના આરાધક મની ગયા. " " " तणणे से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म ं सोच्चा निसम्म ट्टतुट्ठो उट्टाए उइ" त्यार माह श्रम लगवान महावीरनी
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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