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________________ भगवतीस्त्रे ४१६ संते ! एमि आगासपए से पुच्छा' हे भदन्त ! अलोकस्य खलु एकस्मिन् आकाशप्रदेशे किं जीवाः, जीवदेशाः, जीवमलेशाः सन्ति ? किंवा अजीवाः, अजीवदेशाः, अजीपप्रदेशाः सन्ति ? इति पृच्छा । भगवानाह - ' गोयमा ! णो जीवा, जो जीवसा, तंचेव जाय अनंतेर्हि अगुरुयल हुयगुणेति संजु सन्यागाare भागणे' हे गौतम ! अलोकस्य एकस्मिन् आकाशप्रदेश नो जीवाः, तो जीवदेशाः, तदेव यावत्- नो जीवप्रदेशा, नो अजीवाः, को अजीवदेशा', नो अजीवमदेशाः, किन्तु एकः अजीवद्रव्पदेशः अगुरुलघुनः अनन्तैः अनुरूक्लघुगुणैः संयुक्तः सर्वाकाशस्य अनन्तभागोनः अथ द्रव्यादिना तान वर्णयतिजीवप्रदेशा अपि, अजीवा अपि, अजीव देशा अपि अजीवप्रदेशा अपि सन्ति' लोक के एक आकाश प्रदेश में जीव नहीं हैं, जीन्देश भी हैं, जीवप्रदेश भी हैं, अजीव भी है अजीवदेश भी हैं और अजीव प्रदेश भी हैं, इत्यादि अव गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' अलोगस्स णं भंते! एमि आगासपए से पुच्छा' हे भदन्त ! अलोक के एक आकाशप्रदेश में क्या जीव है ? जीवदेश है ? जीवप्रदेश है ? अजीव है ? अजीव देश हैं ? अजीव प्रदेश हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है - 'गोमा ' हे गौतम! 'जो जीवा, जो जीवदेवा, तं चैव जाव अहिं अगुरुलयगुणेहिं संजुते सच्चानालस्त अणनभागूणे" अलोकाकाश के एक आकाशप्रदेश में व जीव हैं, न जीवदेश हैं न जीवप्रदेश हैं, न अजीव है, न अजीवदेश है और न अजीवपदेश हैं। यह अलोकाकाश तो एक अजीवद्रव्यदेशरूप है अनन्त अगुरुबुक गुणों से यह सदा संयुक्त रहता है । सर्वाकाश के अनन्तदें भाग ગૌતમ! લેાકના એક આકાશ પ્રદેશમા જવેા નથી, પરંતુ જીવદેશે પણુ છે, જીવપ્રદેશા પણ છે, અજીવા પણ છે, અજીવદેશે પણ છે અને અજીવપ્રદેશ પણ છે. गौतम स्वाभीना प्रश्न --" अलोगस्स ण' भंते! एगंमि आगासपएसे पुच्छा ” હે ભગવન્! અલેાકના એક આકાશ પ્રદેશમાં શુ જીવે છે ? Maદેશેા છે ? જીવપ્રદેશેા છે ? અજીવેા છે? જીવદેશે! છે? અજીવપ્રદેશ છે ? महावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! हे गौतम! " णो जीवा, णो जीवदेखा, तंचेव जाव अणतेहिं अगुरुलहुयगुणेहिं सजुत्ते सव्यागाररस अणूंतभागूणे ” अडे || प्रशना मे आश प्रदेशमा लवों पशु नथी, लवद्देशी પશુ નથી, જીવપ્રદેશા પણ નથી, અજીવા પણ નથી, અજીવદેશેા પણ નથી અને અજીવપ્રદેશે પણુ નથી. તે અàાકાકાશ તેા એક અજીવ દ્રવ્યદેશ રૂપ
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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