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________________ प्रमेयवन्द्रिका टीका श० ११ ७० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् ३६१ तदुक्तम्-' आगोसस्स पएसा उच्च अहेय तिरियलोए य। जाणाहि खेत्तलोय, अणंतजिणदेसिण सम्म ॥१॥ छाया-आकाशस्य प्रदेशाः, ऊर्ध्वच, अधश्च तिर्यग्लोके च, जानी हि क्षेत्रलोकम् अनन्तजिनदेशित सम्यक् ॥ इति, ॥ 'काल: समयादिः तद्रूपो लोका कालेलोकः तथाचोक्तम्- समयावलीमुहुत्ता दिवसभहोरत्तपवमासाय । संबच्छरजुगपलिया, सागर उस्सप्पिपरियहा।॥ १॥ छाया-समयावलिमुहूर्ताः दिवसाहोरात्रपक्षमासश्च । संवत्सरः युगपल्यानि, सागरोत्सर्पिणी परिवर्ताः। इति । परिवर्त इति मुगलपरावतः, भावरूपो लोको भावलोकः, स च द्विविधः-आगमतः, नोआगमत थ, तत्रागमतो लोकशब्दार्थज्ञस्तत्र चोपयुक्तो भावरूपो लोकः, नो आगगतन्तु भावाः-औदयिकादयस्तद्रूपो लोको भावलोकः, तथा चोक्तम्-“ओदइए, क्षेत्ररूपलोक का नाम क्षेत्रलोक है ! सो ही कहा है-'आगासरस पएसा उच्च अहे यतिरियलोए थ, जाणाहि खेत्तलोय अणंनजिणदेलियं सम्म, आकाश के प्रदेश, ऊँचे, नोचे, तिरछे सर्वत्र है इसी का नाम अनन्तजिने न्द्रों द्वारा कहा गया क्षेत्ररूप लोक है । काल, समय आदिल्प काललोक है. तथा चोक्तम्-'समथाबली मुहत्ता' इत्यादि। समय आवली, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्य, सागर, उत्सर्पिणी और परिवर्तन अवसर्पिणी ये सब कालरूप लोक हैं, भावरूप लोक का नाम भाव लोक है-यह भावरूप लोक आगम और नो आगम की अपेक्षा से दो प्रकार का कहा गया है-आगम की अपेक्षा भावलोक वह है, जो लोक शब्द के अर्थ का ज्ञाता है और उसमें उपयुक्त है.नो आगमकी अपेक्षा भावलोक औदयिक आदि भावरूप है सो ही कहा है-'ओदइए' " आगासस्स पएसा उड्ढ' च अहे य तिरियलोए य, जाणाहि खेत्तलोय अणवजिणदेसिय सम्म" 241शना प्रदेश थे, नीय मने ति२७i, सम સર્વત્ર હોય છે. તેનું જ નામ જિનેન્દ્રોદ્વારા કથિત ક્ષેત્રરૂપ લેક છે. કાળ. समय मा ३५ mls , ४ . पण छे ४- "समयावलीमहत्ता " छत्याहि समय, मावी, मुड़त, हस, मात्र, पक्ष, मास, १५, युग, પલ્ય, સાગર, ઉત્સર્પિણ અને પરિવર્તન (અવસર્પિણ), એ બધાં કાળાપ લેક છે. ભાવરૂપ લેકને ભાવલક કહે છે. તે ભાવરૂપ લેક આગમ અને નેઆગમની અપેક્ષાએ બે પ્રકારને કહ્યો છે. આગમની અપેક્ષાએ ભાવલોક એ છે કે જે લોક શબ્દના અર્થને જ્ઞાતા હોય છે અને તેમાં ઉપયુક્ત હોય છે. ને આગમની અપેક્ષાએ ભાવલેક ઔદાયક આદિ ભાવરૂપ છે. એજ વાત
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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