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________________ ३३० भगवती आयंते, चोवखे परमसुइभृए, देवयपितिकयकज्जे' जलक्रीडां कृत्वा, जलाभिषेकमस्तकोपरि जलक्षरणं करोति, कृत्वा, आचान्तः-कृताचमनः चोक्ष:-धूल्यादिद्रव्यापनयनात् पवित्रीभूतः, अतएव परमशुचिभूतः, दैवत-पितृकृतकार्यः देवतानां पितॄणांच कृतं कार्य जलाञ्जलिदानादिकं येन स तथाविधः सन् 'दव्भसगम्भकलसहत्थगए, गंगाओ महानईओ पच्चुत्तरइ' दर्भसगर्भवलशहस्तगतः-दर्भयुक्त कलशसहितः गङ्गाया महानद्या प्रत्युत्तरति-वहिनिच्छति 'पच्चुत्तरेत्ता, जेणेव सए उड़ए, तेणेच उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, दम्भेहिय, कुसेहिय, वालुयाएहि य, वेई रएइ, रइत्ता, सरएणं अरणिं महेइ' गङ्गाया महानदीतो निसत्त्व यत्रैव स्वको निजः, उटजा-पर्णकुटी आसीत् , तत्रैव-उपागच्छति, उपागत्य, दर्भेश्च-समूले, कुशैश्च-निमूलैः, वालुकाभिश्च वेदि रचयति, रचयित्वा शरकेण निमन्थनकाप्ठेन अरणि निर्मन्थनीयकाष्ठं मध्नाति-धर्षयति, 'महेत्ता, अग्गि पाडेइ, पाडेत्ता, अग्गि करेइ ' तैर कर उसने अपने माथे पर पानी डाला. पानी डालकर 'आयते, चोक्खे, परमसुइभूए देव य पितिळयकज्जे' आचमन किया, (अंजली में पानी लेकर पिया) इस प्रकार धुलि आदि को अपने शरीर ऊपर से हटाने से परमशुचिभूत हुए उसने पितरों को एवं देवताओं को जलांजलि आदि देने रूप कार्य किया. फिर वह दर्भयुक्त कलश को हाथ में लिये हुए ही गंगा महानदी में से बाहर निकल आया.' पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ' निकल कर वह जहां अपनी झोपडी थी. वहां पर आया. 'उवागच्छित्ता दम्भेहि य कुसेहिय वालुयाए हि य वेई रएइ, रइत्ता सरएण अरणिं महेइ ' वहां आ करके उसने समूल दर्भो से, निर्मूल कशों से और बालुका से वेदी की रचना की, रचना कर शरक सेनिर्मथन काष्ठ से दूसरे निर्मन्थनीय काष्ठ को घिसा, 'महेत्ता अग्गि नायु. “ आयते, चोक्खे परमसुइभूए देव य पीतिकयकज्जे" त्या२ माह तय આચમન કર્યું. આ રીતે શરીર પરથી મેલ આદિ દૂર થવાને કારણે પરમ શચિભત થયેલા તે શિવરાજર્ષિએ દેવતાઓને તથા પિતૃઓને જલાંજલિ અર્પણ કરી. ત્યાર બાદ દર્ભયુક્ત કલશને હાથમાં લઈને તે મહાનદી ગંગાभाथी मा२ नीvt. “पच्चुत्तरेत्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ" ५७२ नाजान पातानी ५१मा पाछे। श्या. “ उबागच्छित्ता दभेहि य, कुसेहिय, बालयाएहि य वेइ रएइ, रइत्ता सरएण अरणिं महेइ" त्यो भावी સમૂળ દસેં, નિર્મૂળ કુશે અને વાલુકા (રેતી) ની મદદથી હેમ કરવાની વેદી બનાવી આ રીતે વેદીની રચના કરીને તેણે નિર્મથન કાષ્ટ વડે બીજા નિમ થન કાષ્ઠને ઘસ્યું. (જે લાકડાંઓને ઘસવાથી અગ્નિ પ્રકટે છે તે લાકડાને
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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