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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श• ११ उ० ९ १०२ शिवराजषिचरितनिरूपणम् ३३३ च, 'सकारेत्ता संमाणेत्ता तं मित्तणाइ जाव परिजणं रायाणो य खत्तिएय सिवभई च रायाणं आपुच्छई' सत्कार्य संमान्य यावत् तस्यैव मित्रादिकस्य राज्ञां क्षत्रियाणां च पुरतः शिवभद्रं कुमार राज्ये स्थापयित्वा तं मित्रज्ञाति यावत् स्वजनसम्बन्धिपरिजनान् राज्ञश्च क्षत्रियांश्च शिवभद्रं च राजानम् आपृच्छति, 'आपुच्छिता सुबहु लोहीलोहकडाहकडुच्छ्रयं जाव भंडगं गहाय ये इमे गंगाकूलगा वोणपत्था तावसा भवंति, तंचे जाव तेसिं अंतिए मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए' आपृच्छय सुबहु लौहीलौहकटाहकटुच्छुकं यावत् ताम्रकं तापसभाण्डकं गृहीत्वा ये इमे पूर्वोक्ता गङ्गाकूलगाः वानप्रस्थास्तापसा भवन्ति, तदेव पूर्वोक्तवदेव यार तेषामन्तिके मुण्डो भूत्वा दिशाप्रोक्षकतापसतया प्रव्रजितः, 'पञ्चइएऽविषणं आगत उन सवका सत्कार किया, और सन्मान किया. 'सक्कारेत्ता संम्मानेत्ता तं मित्तणाइ जाव परिजणं रायाणो य खसिए य सिवभई च रायाणं आपुच्छइ' सव का सत्कार सन्मान कर के यावत् उसी मित्रादिक राजाओं के एवं क्षत्रियों के समक्ष शिवभद्रकुमार को राज्य में स्थापित किया-स्थापित कर के फिर शिवराजा ने मित्र ज्ञाति यावत् स्वजन संबंधि परिजनों से राजाओं से, एवं क्षत्रियों से तथा शिवभद्र राजा से पूछा-'आपुच्छित्ता सुबहु लोहो-लोहकडाह-कडुच्छुयं जाव भंडगं गहाय जे इसे गंगाकूलगा बाणपत्था तावसा भवंति तं चेव जाव तेसिं अतिए झुंडे अचित्ता दिलापोक्खियतावसत्ताए पव्वहए' पूछकर वह तैयार किये हुए उन लोही लोहकटाइ एवं कर छली आदि तापस योग्य उपकरणों को लेकर गंगा तटवासी उन वानप्रस्थों के पास पहुँचा वहां पहुच कर उसने उन के पास मुंडित " सकारेत्ता समाणेत्ता तं मित्तणाइ जाव परिजण रायाणो य खत्तिए य सिवभह च रायाण आपुच्छइ " सोना सा२ तथा सन्मान शेने तो पाताना મિત્રોને, જ્ઞાતિજનોને, સ્વજનેને, સંબધીઓને અને પરિજનોને તથા રાજાએને અને ક્ષત્રિયને તથા શિવભદ્ર રાજાને પૂછ્યું એટલે કે તાપસ પ્રવજ્યા म २२ ४२१। भाटे तेमनी अनुमति मा. “ आपुच्छित्ता" तेमनी अनुमति भगवान “सुबह लोही-लोहकडाह-कडुन्छुयं जाव भंडग गहाय जे इसे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवति तं चेव जाव तेसिं अंतिए मुंडे भविता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए" पडलेधी न तयार ४२रावेस ता. ४ाही. કડછી, તાબાનુ કમંડળ આદિ લઈને તે ગંગાતટવાસી તે વાનપ્રસ્થ તાપ પાસે પહોંચી ગયે. ત્યાં પહોંચીને તેણે દિશા પ્રેક્ષી તાપની પાસે ખંડિત थन दिशा२७ ५ ३१ दीक्षा २०१२ ४ सीधी. "पव्वइए वि
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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