SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 321
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ % - - प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ८ सू० १ नलिनस्थजीवनिरूपणम् २९९ अथाष्टमोदेशः प्रारभ्यते नलिनजीव वक्तव्यता। — मूलम्-"नलिणे णं भंते! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे? एवं चेव निरवलेसं जाव अणंतक्खुत्तो, सेवं भंते ! सेवं भंते! ति" ॥सू० १॥ . छाया-नलिनं खलु भदन्त ! एकपत्रकं किम् एकजीवम्, अनेकजीवम् ? एवमेव निरक्शेषं यावत अनन्तकृत्वः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥स०१॥ टीका-अथाष्टमं नलिनोदेशकमाह-'नलिणे णं भंते' इत्यादि, गौतमः पृच्छति-'नलिणे ण भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ?' हे भदन्त ! नलिनं खलु कमलविशेषः एकपत्रकम्-एकपत्रावस्थायां किम् एकजीवं भवति किंवा अनेकजीवं भवति ? भगवानाह-एवं चेव निरवसेसं जाव अणंतवखुत्तो' हे गौतम ! एवमेव-पूर्वोक्तोत्पलवदेव निरवशेषं सर्वं यावत् अनन्तकृत्वः अनन्तवारम् अत्रापि आठवें उद्देशे का प्रारम्भ नलिन जीव वक्तव्यता 'नलिणे णं अंते !" इत्यादि टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा आठवें नलिनोद्देशक का कथन किया है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है कि ' नलिणेणं ते! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे हे भदन्त ! कमल विशेषरूप जो नलिन है वह जब एक पावस्था में होता है तब क्या एक है जीव जिसमें ऐसा होता है अथवा अनेक है जीव जिसमें ऐसा होता है? इसके उत्तर में प्रभु कहेते है-एवं चेव निरवसेसं जाव अणंतक्खुत्तो' हे गौतम! इस विषय के उत्तर में उत्पल प्रकरण गत समस्त कथन આઠમા ઉદેશાનો પ્રારંભ नलिन १३४तव्यता" नलिणेण भते ! एगपत्तए कि एगजीवे "त्याह ટીકાર્થ–સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં આઠમાં નલિનદેશક નામના ઉદ્દેશકની પ્રરૂપણા કરી છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભન सेवा प्रश्न पूछे छे , " नलिणेण भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, धणेगजीवे ?" હે ભગવન! કમલે વિશેષ રૂપ જે નલિન થાય છે, તે જ્યારે એક પત્રાવસ્થા વાળું હોય છે, ત્યારે તેમાં શું એક જીવ હેય છે? કે અનેક જીવ હેય છે ? मडावीर प्रसुन। उत्तर-" एव चेव निरवसेस जाव अणंतक्खचो" गौतम | भा प्रशना उत्तर ३२ Grua४२ गत सभरत ४थन “अनन्तकृत्वः"
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy