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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० ११ ७० ५ सू० १ नालिकस्थजीवनिरूपणम् २१३ . अथ पञ्चमोदेशकः प्रारभ्यते नालिकजीव वक्तव्यता। यूलम्-"नालिए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे? एवं उद्देलगवत्तवया निरवसेसा भाणियवा, सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥सू० १॥ ___ छाया-नालिकः खलु भदन्त ! एकपत्रकः किम् एकजोधः, अनेकजीवः? एवं कुम्भिकोदेशकवक्तव्यता निरवशेषा भणितव्या, तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥०१॥ अथ पञ्चमं नालिकादेशकमाह-'नालिए णं भंते' इत्यादि, गौतमः पृच्छति 'नालिए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे ?'-हे भदन्त ! नालिकः खलु वनस्पति विशेषः एकपत्रकः एकपत्रावस्थायां किम् एकजीवो भवति ? किंवा अनेकजीवो भवति? भगवानाह-एवं कुंभिउद्देसगवत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्या' पांचवें उद्देशे का प्रारंभ लालिका जीच वक्तव्यता'नालिएणं भंते एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे" इत्यादि टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा पांचवें नालिकोद्देशक को कहा है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-' नालिए ण भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे' हे भदन्त ! नालिका जो वनस्पति है वह जब एकपत्रावस्था में रहती है तब वह एक जीववाली होती है ? या अनेक जीवोंवाली होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं‘एवं कुंभि उद्देगसगवत्तव्यया निरवसेसा भाणियव्वा' हे गौतम ! यहां પાંચમા ઉદેશાને પ્રારંભ ____ नति४२५ ७१५४तव्यता" नालिए णं भंते ! एगपत्तए कि एगजोवे अणेगजीवे ?" त्या ટીકાથ–સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પાચમા માલિકે દેશકની પ્રરૂપણ કરી छ. या विषयने मनुलक्षीन गीतमा स्वाभाना -" नालिएणं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे ?" है मगवन् ! नाति नामनी २ वनस्पति छ તે જ્યારે એક પત્રાવસ્થામાં હોય છે, ત્યારે તેમાં કેટલા જી રહેલા હોય છે? શું ત્યારે તેમાં એક જીવ હોય છે? કે અનેક જીવ હોય છે? महावीर प्रभुन। उत्त२-" एवं कुंभि उद्देसगवत्तव्वया निरवसेना भाणियव्वा"
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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